आखिर क्यों हारे सीएम पुष्कर धामी अपनी विधानसभा खटीमा,भीतरघात या रही अन्य वजह,पढे बेबाक उत्तराखण्ड पर सटीक विश्लेषण

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खटीमा(उत्तराखण्ड)- उत्तराखंड में 2022 विधानसभा चुनाव में भले ही बीजेपी 47 सीटों को जीतकर पूर्ण बहुमत ले आई हो । लेकिन बीजेपी की जीत को कहीं ना कहीं थोड़ा कसेला खटीमा विधानसभा से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की हार ने कर दिया।मुख्यमंत्री पुष्कर धामी खटीमा विधानसभा में कांग्रेस प्रत्यासी भुवन कापड़ी से लगभग सात हजार वोटो से अपनी विधानसभा को हार गए। हार के बाद अब मंथनो का दौर जारी है की आखिर सीएम रहते हुए धामी अपनी विधानसभा जीतने से आखिर कैसे चूक गए।क्यों वह उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के हारने के हारने के मिथक को नही तोड़ पाए।

भाजपा कार्यकर्ताओं का अति आत्मविश्वास भी रहा सीएम की हार का बड़ा कारण

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खटीमा विधानसभा में चुनाव हारने के पीछे भाजपा कार्यकर्ताओं का अति आत्मविश्वास भी सीएम की हार का कारण रहा।खटीमा के विधायक पुष्कर धामी के उत्तराखंड के सीएम बनने के बाद से ही खटीमा विधानसभा के बीजेपी कार्यकर्ता आश्वस्त हो गए थे की धामी अब 2022का विधानसभा चुनाव आसानी के साथ जीत जायेंगे।कार्यकर्ताओं की धरातल पर मेहनत की कमी व चुनाव को लेकर बनाई गई हवाई व्यूह रचना सीएम की हार के बड़े कारणों में रहे।धामी समर्थक कार्यकर्ता केवल व केवल सोशल मीडिया पर ही चमकते नजर आए।आम मतदाता तक राज्य सरकार के कार्य व भाजपा की रीति नीति को पहुंचाने में पूर्ण विफल रहे।सीएम के आसपास रहने वाले कई चेहरे जनता के बीच मेहनत करने की जगह सिर्फ ओर सिर्फ सीएम के आने पर उनके आसपास मंडराने व आमजनता के बीच खुद के सीएम के खास होने का मैसेज देने तक ही सीमित रहे।जबकि आमजनता के बीच पहुँच सीएम को मजबूत करने व भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने से उन्हें कोई सरोकार नही रहा।बीजेपी लॉबी में छ्द्म रूप धरे कार्यकर्ताओ के रूप में ऐसे बड़े चेहरे थे जिन्हें वास्तव में सीएम की जीत हार से कोई सरोकार नही था।कुल मिलाकर बीजेपी कार्यकर्ताओं का अति आत्मविश्वास व केवल सीएम के चेहरे पर आसानी के साथ चुनावी वैतरणी पार करने की सोच भी हार के कारणों में प्रमुख रही।सीएम पूरे 6 माह तक कई ऐसे कार्यकर्ताओ से घिरे रहे तो चुनाव में अपने बूथ पर ही सीएम की हार नही बचा पाए।

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थारू जनजाति की ना को भी हाँ में नही बदल पाए सीएम

खटीमा विधानसभा में सीएम की हार को सुनिश्चित करने में अगर किसी वर्ग के मतदाता में अहम भूमिका निभाई तो वह निश्चित ही थारू जनजाति का मतदाता रहा।पर्वतीय मतदाता के बाद खटीमा में लगभग साढ़े अट्ठाइस हजार की संख्या के रूप में दूसरे स्थान पर स्थापित थारू मतदाता की बात की जाए तो राज्य गठन के बाद से ही बीजेपी इस वर्ग को साधने में पूर्ण असफल रही।हालांकि प्रदेश के मुखिया बनने के बाद से ही सीएम धामी थारू जनजाति के मतदाताओं को लुभाने के तमाम प्रयास करते नजर आए।उसमे चाहे खटीमा में जनजाति समाज के लिए करोड़ो की लागत से बने एकलव्य आदर्श विद्यालय निर्माण हो,एटीएस खटीमा छात्रावास निर्माण ,खटीमा कंजाबाग चौराहे का नाम महाराणा प्रताप के नाम पर रखने की घोषणा,सहित थारू जनजाति के लिए की गई कई अन्य घोषणाओं कों करने की बात हो।लेकिन यह सभी प्रयास भी थारू जनजाति को बीजेपी के पक्ष में करने को नाकाफी रहे। सीएम धामी ने थारू जनजाति के जिन नेताओ को सरकार,बीजेपी जनजाति मोर्चा व जनजाति आयोग के अहम पदों पर बैठाया।थारू समाज के वह लोग भी थारू जनजाति को सीएम के पक्ष में करने में नाकाम रहे।जबकि 2012 से 2017 चुनाव में सीएम के लिए खटीमा विधानसभा में जीत की संजीविनी साबित होने वाले थारू जनजाति नेता रमेश राणा का 2022 चुनाव में बसपा प्रत्यासी के रूप में हजार वोट के भीतर सिमट जाना सीएम की हार की कहानी लिख गया।मुख्यमंत्री धामी दो बार जिस थारू समाज के वोटरों के ध्रुवीकरण के चलते जीत हासिल करने में कामयाब रहे जबकि इस बार थारू समाज के मतों का किसी अन्य प्रत्यासी के पक्ष में ना जाकर कांग्रेस के पक्ष में चला जाना सीएम धामी की हार को सुनिश्चित कर गया।सीएम धामी को लेकर थारु समाज की जमीन सम्बंधित आशंकाएं व एक वर्ग विशेष के हावी होने का डर थारु समाज को सीएम के विपरीत ले जाता गया।जिस कारण शुरूवात से ही सीएम धामी के लिए अपने मन मे ना को बैठा चुके थारु समाज की ना को सीएम हां में लाख प्रयासों के बावजूद नही बदल पाए।

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धामी के सीएम बनने के बाद ओएसडी व अन्य करीबियों की खटीमा की जनता से संवाद हिनता भी हार का रही कारण

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी विधायक के रूप में जहां लगातार जनता के बीच बने रहते थे।वही विधानसभा का आम मतदाता भी सीधे धामी से सम्पर्क कर सकता था।लेकिन सीएम बनने के बाद अपने विधायक से सम्पर्क कर अपनी बात रखना जनता के लिए टेडी खीर हो गई थी।हालांकि देहरादून में खटीमा के चकरपुर निवासी डॉ सत्य प्रकाश रावत को सीएम ने सबसे पहले अपना विशेष कार्यकारी अधिकारी (ओएसडी)नियुक्त किया।लेकिन जिस खटीमा निवासी ओएसडी सत्य प्रकाश को सीएम व उनकी जनता के बीच सेतु का कार्य करना था।उन्होंने 6 माह के धामी के सीएम कार्यकाल में खटीमा की जनता की समस्याओ के निराकरण की बात तो छोड़िए सीएम के समक्ष अपनी बात रखने हेतु फोन करने वालो के फोन तक नही उठाये।इस मामले में आमजनता ही नही भाजपा के खटीमा के वरिष्ठ बीजेपी कार्यकर्ताओं भी शामिल रहे जिन्होंने सीएम के ओएसडी सत्य प्रकाश रावत से फोन में बात करनी चाही लेकिन सुपर सीएम बनकर देहरादून बैठे ओएसडी महोदय ने बीजेपी कार्यकर्ताओं के फोन उठाने की भी जहमत नही उठाई।सीएम के ओएसडी सत्य प्रकाश रावत के प्रति खटीमा विधानसभा की जनता व बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी चर्चाओं में रही।ओएसडी महोदय सरकारी कर्मचारी होने की अपनी मानसिकता से जहां बाहर नही निकल पाए वही सीएम व विधानसभा की जनता के बीच सेतु तो नही हार के कारणों में एक जरूर बन गए।

भीतरघात भी रही क्या सीएम धामी के हार की वजह?

प्रदेश में बीजेपी के कई प्रत्यासी मतगणना से पहले पार्टी के अंदर भीतरघात के आरोप प्रदेश भर में लगाते नजर आए।विधानसभा चुनावों के बाद बड़ा सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या सीएम को हराने के लिए खटीमा विधानसभा में भीतरघात हुआ।बात अगर 2017 विधानसभा चुनावों की करी जाए तो उस चुनाव में जरूर सीएम के पार्टी के भीतर विरोधी लॉबी ने सीएम के खिलाफ खुलकर काम किया था।लेकिन सीएम भीतरघात के बावजूद भी जीतकर आ गए।लेकिन 2022 में विधानसभा चुनाव में पुष्कर धामी केवल विधायक नही प्रदेश के सीएम थे।इसलिए पार्टी के भीतर उनसे अस्वीकार्यता रखने वाले खटीमा विधानसभा के विरोधी बीजेपी कार्यकर्ताओ ने इस बार खुल कर अपना विरोध नही जता पाए। धामी के सीएम होने के चलते सरकारी तंत्र की शुरुवात से ही धामी विरोधी कार्यकर्ताओ पर नजर थी।इसलिए धामी विरोधी भाजपा कार्यकर्ताओ धामी के बड़े कद के बाद विरोध को सार्वजनिक करने से परहेज किया।जबकि आधे से अधिक धामी विरोधी लॉबी धामी के सीएम बनते ही धामी के साथ खुद को दिखाती नजर आई।बाकी बचे विरोधी विधानसभा से बाहर जाकर पार्टी के लिए कार्य करते नजर आए। धामी विरोधियों ने खुल कर विरोध ना कर अपने मंसूबो को इस तरह गुपचुप तरीके से अंजाम दिया जिसका सरकारी तंत्र को भी अहसास नही हुआ।हालांकि धामी उनकी विधानसभा में हराने के लिए बड़े स्तर से भी भीतरघात की बाते अब सामने आ रही है।लेकिन इस बात के पुख्ता सबूत शायद ही मिल पाए क्योंकि विरोधियों की रणनीति इस बार इतने गुपचुप तरीके से काम कर गई जिसका एहसास सीएम की हार के बाद ही सामने आ पाया।

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फिलहाल प्रचंड बहुमत के बाद सीएम धामी की अपनी विधानसभा में हार खुद मुख्यमंत्री को बेहद बड़ी टिस दे गई।साथ ही पूर्व में नैनीताल लोकसभा में एनडी तिवारी की हार के बाद उनसे पीएम की कुर्सी छिटक जाने की यादों को ताजा कर गई।हालांकि हार के बावजूद धामी को पुनः सीएम बनाये जाने की उनके समर्थक मांग कर रहे है।लेकिन यह अभी भविष्य के गर्भ में की बीजेपी आलाकमान आखिर किसको उत्तराखण्ड की कमान सौंपता है।फिलहाल स्वयं सीएम धामी अब अपनी विधानसभा में मिली हार का मंथन करना चाहिए कि सीएम जैसे हैवीवेट पद के बाद भी उन्हें आखिर क्यों अपनी ही विधानसभा से हार का मुंह देखना पड़ा

Deepak Fulera

देवभूमि उत्तराखण्ड में आप विगत 15 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी पत्रकारिता में बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सोशल प्लेटफॉर्म में जनमुद्दों पर बेबाक टिपण्णी व सक्रीयता आपकी पहचान है। मिशन पत्रकारिता आपका सर्वदा उद्देश्य रहा है।

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