भारतीय भाषाओं के संरक्षण व अँग्रेजियत को हर स्तर पर समाप्त करने हेतु वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र धामी ने लिखा प्रधानमंत्री को खुला पत्र

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खटीमा(उत्तराखण्ड)-लगभग तीन दशकों से देश भर में भारतीय भाषाई अस्मिता के लिए संघर्ष कर रहे अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के राष्ट्रीय सचिव व वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र धामी ने देश के प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र लिखा है।भाषाई अस्मिता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे धामी ने पीएम से अपने पत्र में अंग्रेजी की अनिवार्यता हर स्तर पर समाप्त करने व भारतीय भाषाओं को अनिवार्य कर वास्तविक इतिहास से नई पीढ़ी को रूबरू कराने की बात कही।वही धामी ने अपने पत्र में भारतीय पुरातन संस्कृति के संरक्षण हेतु भारतीय भाषाओं की अनिवार्यता को जरूरी बताया है।रवींद्र धामी वर्ष 1991 से लेकर 1999 तक चले भाषाई आंदोलन के राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य नेतृत्व कर्ता रहे।वही कई बार भारतीय भाषाओं की अस्मिता लेकर दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर चलाये गए आंदोलन के चलते आपको तिहाड़ जेल की यात्राएं भी करनी पड़ी।

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भारतीय भाषाई आंदोलन के दौरान दिल्ली में लगभग दो दशक पहले छायाचित्र में मौजूद पत्रकार रवींद्र धामी

अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के राष्ट्रीय सचिव रवींद्र धामी ने प्रधानमंत्री को खुले पत्र के माध्यम से क्या कहा है उसे हम आपके लिए जस का तस रख रहे है।आप भी जानिए भाषाई अस्मिता के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे विरिष्ट पत्रकार रवींद्र धामी के पीएम को लिखे खुले पत्र के विषय मे

प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र

सेवा में,
आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी
प्रधानमंत्री, नई दिल्ली

विषय..आजादी के तत्काल बाद से भारतीय संस्कृति की जड़ों में मट्ठा डालने के लिए साजिशन अंग्रेजित के माध्यम से धर्म से ही निरपेक्ष का जहर देश की नई पीढ़ी में भरा जा रहा है, जल्द अंग्रेजी की अनिवार्यता को हर स्तर पर समाप्त कर भारतीय भाषाओं को अनिवार्य व वास्तविक इतिहास पढ़ाने के सम्बंध में..।
महोदय,
देश के आजादी के बाद ऐसा क्या हुआ कि हमारी इतिहास की पुस्तकों में विदेशी आक्रांता महान हो गए। क्यों धर्म से निरपेक्ष की घुट्टी नई पीढ़ी को पिला कर भारतीय संस्कृति से कट करने को हर स्तर पर विदेशी भाषा अंग्रेजी अनिवार्य कर दी। यह एक तरह से सबसे बड़ी साजिश है..जिसे अंग्रेज नहीं कर पाए वह करना जारी है।…ऐसा लगता है जैसे अंग्रेजियत को यकीन था कि आजादी के कुछ दशक में उनका नया इतिहास.. धर्म निरपेक्ष का जहर भारतीय संस्कृति से नई पीढी को जड़ों से कट कर देगा। लेकिन 50-75 साल में भी नई पीढ़ी पूरी तरह नहीं बदल पाई… .सूचना क्रांति डिजिटल युग में…..अंग्रेजित के माध्यम से मातृभाषाओं को खत्म करने की साजिश को हर सच्चा भारतीय समझने लगा है, जब तक भारतीय भाषाएं हैं तभी तक भारतीय सनातन संस्कृति का वजूद है..भारत भी भारत तभी तक है….आपसे अनुरोध है कि मानसिक आजादी.. हर स्तर पर विदेशी भाषा अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म कर भारतीय भाषाओं को उनका हक दिया जाए। साथ ही शिक्षा में भारत के वास्तविक इतिहास से रूबरू कराया जाए। आपसे उम्मीद है कि इस ओर निकट भविष्य में कार्य होगा।
भवदीय
रवींद्र सिंह धामी
भारतीय भाषाई अस्मिता के संघर्ष का सिपाही, राष्ट्रीय सचिव, अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन।
स्थान–खटीमा, देवभूमि उत्तराखंड

Deepak Fulera

देवभूमि उत्तराखण्ड में आप विगत 15 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी पत्रकारिता में बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सोशल प्लेटफॉर्म में जनमुद्दों पर बेबाक टिपण्णी व सक्रीयता आपकी पहचान है। मिशन पत्रकारिता आपका सर्वदा उद्देश्य रहा है।

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