राज्य आंदोलन की अग्रणी भूमि खटीमा से निकले युवा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी से राज्य आन्दोलनकारियो को सपनो के उत्तराखण्ड की उम्मीद,खटीमा गोलीकांड बरसी पर लगे शायद उम्मीदों को पंख

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खटीमा(उधम सिंह नगर)-राज्य आंदोलन की अग्रणी भूमि खटीमा से विधायक के रूप में प्रतिनिधित्व कर रहे पुष्कर सिंह धामी को भाजपा आलाकमान द्वारा जहां प्रदेश की कमान सौंपी है।वही पुष्कर सिंह धामी के युवा मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य आन्दोलनकारियो को अपने ज्वलंत मुद्दों पर अब राज्य सरकार से सकारात्मक पहल होने की उम्मीद जगी है।

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हम आपको बता दे कि हम एक बार फिर खटीमा गोलीकांड की 26 वी वर्षगांठ मनाने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। इन 26 वर्षों में हमने 6 वर्षों के प्रथम चरण में राज्य आंदोलन की संघर्षपूर्ण लड़ाई को बड़े धैर्य से लड़ा तथा एक बड़े बलिदान के पश्चात हम राज्य प्राप्ति के संघर्ष में कामयाब भी हुए।

9 नवंबर सन 2000 को संसद के गर्भ से 27 वें राज्य के रूप में उत्तराखंड राज्य का जन्म हुआ। एक शिशु राज्य ने किलकारी भरी तथा कार्यवाहक सरकार का निर्माण कर निर्वाचित सरकार के अस्तित्व में आने का इंतजार प्रदेश की जनता बड़ी बेसब्री से करने लगे। उत्तराखंड में बीते 20 वर्षों में वर्ष 2002, 2007 ,2012 ,2017 के चुनाव में चार लोकतांत्रिक सरकारों का गठन किया तथा केवल 2002 से 2007 तक के प्रथम कालखंड को छोड़ दें ,तब कार्यवाहक सरकार सहित अन्य तीन 15 साल के कालखंड में भी कभी तीन फिर दो पुनः तीन अल्पकालिक मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल को हमने देखा तथा सहा। सज्जनों आज जबकि हम 2017 से 2022 का चौथा कालखंड पूरा कर 2022 के चुनाव की तरफ आगे बढ़ रहे हैं तथा भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखंड में पूरे भरोसे के साथ एक युवा के हाथों
में उत्तराखंड की कमान सौंपी हैं जिनसे कि उत्तराखंड के जनमानस को अत्यधिक उम्मीदें हैं।

यह बड़ा ही सौभाग्य है कि जिस व्यक्ति को भाजपा ने सबसे मुश्किल समय में उत्तराखंड की कमान सौंपी है ,वह आज तक के सभी मुख्यमंत्रियों में सबसे कम उम्र के एक युवा हैं तथा उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए सर्वप्रथम बलिदान देने वाले खटीमा विधानसभा के विधायक के बतौर प्रदेश की विधानसभा में खटीमा नेतृत्व कर रहे हैं। खटीमा सहित संपूर्ण उत्तराखंड में 12000 चिन्हित तथा वंचित राज्य आंदोलनकारी जिनको कि आज तक की सभी सरकारो ने बेहद निराश किया है , उन्हे युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी से बडी उम्मीदे है I

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आज जहाँ सत्ता प्राप्ति के लिए सभी राजनैतिक दल एडी -चोटी का जोर लगाकर किसी भी हद तक जाकर सत्ता प्राप्ति की जुगत मे लगे है। जबकि जनसामान्य ने वर्ष 1994 मे मुलायम सिंह से दो- दो हाथ कर खटीमा मसूरी तथा मुजफ्फरनगर (रामपुर तिराहा )जैसे वीभत्स नरसंहार को अपनी छाती में लिया ।सैकड़ों आंदोलनकारी बुरी तरह घायल हुए तथा इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई। सरकारी तंत्र ने कभी भी सक्षम आयोग का गठन नहीं किया ।एक कमजोर परिषद का गठन कर राज्य आंदोलनकारियों को गुमराह किया गया ।न ही आंदोलनकारियों के हत्यारों को सजा दी गई तथा महिलाओं के साथ में दुराचार व कदाचार को भी पिछली सरकारों ने कभी गंभीरता से नहीं लिया । हद तो तब हो गई कि खटीमा जिसने राज्य आंदोलन में शहादत देने के साथ-साथ राज्य निर्माण के खिलाफ संचालित रहे रक्षा इकाई के आंदोलन का मुकाबला किया तथा यहां के संघर्षशील आंदोलनकारियों ने जनशक्ति को संजोकर माननीय उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय में निष्पक्ष पैरवी भी स्वयं अपने संसाधनों से ही की तथा वर्षों की सुनवाई के पश्चात अंततः आंदोलनकारी अपने सीमित संसाधनों में न्यायालय में जीत दर्ज करने में सक्षम हुए ।लेकिन बीते 20 वर्षों में यहां की जनता को एक अदद शहीद स्मारक सत्ताओ बनवाकर नहीं दिया। वर्ष 1 सितंबर 1994 की तारीख के दिन अट्ठारह हजार की भीड़ पर हुए पुलिसिया जुल्म के पश्चात 7 लोग जहां काल कलवित कई आंदोलनकारी सदा के लिए विकलांग हो गए सैकड़ों लोग जेलों में ठूंस दिए गए जो आंदोलन की अगुवाई करने वाले शीर्ष व्यक्ति थे वह भूमिगत हो गए तथा पुलिस उनकी जान की दुश्मन बन गई। उन्हीं लोगों ने पुलिस कार्यवाही की चिंता न करते हुए पुनः आंदोलन को एकजुट किया तथा रक्षा इकाई के खिलाफ संघर्ष करने के साथ-साथ न्यायालय में पैरवी कर अपने अन्य साथियों को न्याय दिलाने में कामयाबी हासिल की।

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खटीमा क्षेत्र की आंदोलनकारी जनता को इस बात से बड़ी हैरानी है कि खटीमा के अतिरिक्त सभी स्थानों पर शहीदों की याद में स्मारकों का निर्माण राज्य बनने के 1 दशक के अंतर्गत समय पर कर दिया गया, लेकिन खटीमा की जनता पूछना चाहती है कि प्रदेश में गठित पूर्व की सरकारों ने खटीमा की उपेक्षा क्यों की ?उनका मानना है कि सौभाग्य से वर्तमान खटीमा क्षेत्र के विधायक स्वयं सरकार के मुखिया हैं तथा अब लोगों की उम्मीदें बढ़ने लगी है कि शायद आगामी शहीद दिवस के दिन जरूर वह खटीमा आएंगे तथा निर्माणाधीन शहीद स्थल में शहीदों को श्रद्धांजलि प्रदान करेंगे।

खटीमा की जनता को अभी भी याद होगा कि खटीमा की जनता ने मुलायम सिंह सरकार की पहली गोली अपने सीने पर खायी, जहां से कि राज्य आंदोलन ने जोर पकड़ा खटीमा गोलीकांड राज्य आंदोलन का सबसे बड़ा गेम चेंजर घटनाक्रम बन गया ।जिसके बाद की शहादतो का सिलसिला प्रारंभ हो गया। लेकिन बाद में हुए घटनाक्रमों तथा राजनैतिक दलों के राजनेताओं ने खटीमा गोलीकांड को भुला दिया तथा नेताओं की जुबान पर पौड़ी का लाठीचार्ज ,मसूरी ,मुजफ्फरनगर कांड ही चर्चा में रहा तथा 20 वर्षों में सभी राजनैतिक दलों की सरकारों ने अन्य स्थानों पर स्मारकों का निर्माण किया तथा उस क्षेत्र में जाकर विकास योजनाओं की घोषणाएं की वह वहां के संघर्षशील आंदोलनकारियों को सम्मानित किया ।प्रदेश के लगभग सभी मुख्यमंत्री आज तक खटीमा छोड़ अन्य स्थानों पर अवश्य ही शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने जरूर जाते हैं ।लेकिन 20 वर्षों में राज्य आंदोलन के लिए प्रथम शहादत देने वाले खटीमा की याद न किसी दल को आयी , न ही सरकार के किसी मुखिया ने खटीमा के शहीद स्थल का रुख किया। भाजपा हो या कांग्रेस या यूकेडी इन्होंने खटीमा की शहादत को इन 20 वर्षों में कभी मुद्दा माना ही नहीं । भला हो यहां के संघर्षशील आंदोलनकारियों का कि वह जैसे -तैसे शहीद स्थल को भू-माफियाओं के हाथों खुर्द- बुर्द होने से बचाने में कामयाब हो गएI आज जागरूक राज्य आंदोलनकारियों के कारण शहीद स्थल बचने के साथ-साथ क्षेत्रीय विधायक पुष्कर सिंह धामी तथा वर्तमान मैं मुख्यमंत्री उत्तराखंड के प्रयासों से वहां पर 20 साल बाद भव्य स्मारक का निर्माण किया जा रहा है तथा लोगों को बड़ी उम्मीदें हैं कि 20 वर्षों में प्रथम बार ही सही सौभाग्य से खटीमा के क्षेत्रीय विधायक जो कि सरकार में मुखिया है ,उनके हाथों शहीदों को आगामी 1 सितंबर को श्रद्धांजलि दी जाएगी जो खटीमा की जनता और यहां के राज्य आंदोलनकारियों के लिए गौरव का दिन होगा।

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इसके अलावा राज्य आंदोलनकारी जिंन्होने सरकार के विभिन्न विभागों में डायरेक्ट या क्षेतिज आरक्षण के चलते नोकरी पाई।ऐसे लगभग 1440 लोगो की नोकरी जनहित याचिका पर हाईकोर्ट से आये फैसले के बाद खतरे में बनी हुई है।इस अहम मुद्दे पर भी प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी अपनी सरकार के द्वारा इनके हितों का संरक्षण करेंगे ऐसी राज्य आंदोलनकारियों को उम्मीदें बनी हुई है।साथ आगामी 1 सितंबर खटीमा गोलीकांड की बरसी पर स्वयं मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड 20 सालों के सूखे को खत्म एक प्रदेश के मुखिया के रूप में खटीमा की धरती पर पहुँच राज्य आंदोलन शहीदो को श्रधांजलि अर्पित कर खटीमा सहित संपूर्ण उत्तराखंड में 12000 चिन्हित तथा वंचित राज्य आंदोलनकारी के लंबे इंतजार को खत्म करेंगे।

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