निजी स्कूलों की ट्यूशन फीस तय करने में सरकार को आखिर क्यों है परहेज

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खटीमा(उत्तराखण्ड)- भले ही प्रदेश के शिक्षा मंत्री कोविड संक्रमण काल मे प्रदेश के उन लाखों अभिभावको के साथ खड़े रहने की बात करते हो लेकिन बात कर स्कूलों की फीस की आये तो ऑन लाइन कक्षाओं के नाम पर दो से तीन हजार तक ट्यूशन फीस की वसूली पर भी ना तो शिक्षा महकमा ओर ना प्रदेश का शिक्षा मंत्रालय को कोई एतराज नजर आता है।जबकि भारी भरकम ट्यूशन फीस के नाम पर अभिभावको पर पड़ रहे आर्थिक दबाव के चलते अब प्रदेश के कई जिलों में अभिभावक स्कूल नही तो फीस नही के आंदोलन को हवा दे चुके है।लेकिन इस सबके बावजूद भी प्रदेश सरकार उन लाखों अभिभावको की आवाज को अनसुना कर ऑन लाइन कक्षाओं के नाम पर चल रही नामी निजी स्कूलों की वसूली पर चुप्पी साधे हुए है।

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वही अब प्रदेश के अभिभावको द्वारा निजी स्कूलों के खिलाफ आंदोलन का रुख अख्तियार कर लेने के बाद निजी स्कूल एसोशिएशन भी कोविड संक्रमण काल मे अपने दिवालिया होने की दुहाई दे सरकार की चौखट पर अपना माथा पीटने का खेल शुरू कर चुकी है।साथ ही इन सबके बीच ट्यूशन फीस के नाम आंदोलित अभिभावक भी अब निजी स्कूल एसोशोयेशन को असमाजिक तत्व नजर आने लगे है।वही मीडिया का सहारा ले प्रदेश के बड़े निजी स्कूल अब खबरों के माध्यम से खुद की बेचारगी व दिवालिया स्थिति में पहुँचने की कहानी को जनता व सरकार तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे है।साथ ही स्कूल नही तो फीस नही के नाम पर आंदोलित अभिभावको के खिलाफ भी मोर्चा खोल चुके है।

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प्रदेश सरकार आखिर क्यों तय नही करती ऑन लाइन कक्षाओं की कक्षावार ट्यूशन फीस

पिछले पांच महीनों से प्रदेश में कोविड संक्रमण काल मे जहां मध्यम वर्गीय व अति मध्यम वर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति में गिरावट दर्ज हुई है।वही इस दौरान ट्यूशन फीस के नाम पर दो से तीन हजार का दबाव अब अभिभावको को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर रहा है।लेकिन प्रदेश की सरकार हो या शिक्षा मंत्री प्रदेश के निजी स्कूलों की ट्यूशन फीस को तय नही करना चाहते है। अगर ऑन लाइन कक्षाओं की ट्यूशन फीस पर सरकार अपने स्तर पर कक्षा वार फीस का अगर निर्धारण कर दे तो निश्चित रूप से प्रदेश के लाखों अभिभावको को इस फैसले से राहत मिल सकती है।लेकिन मात्र ट्यूशन फीस लेने का निजी स्कूलों को आदेश जारी कर सरकार ने प्रदेश के लाखों अभिभावको को इस संक्रमण काल मे मनमाफिक ट्यूशन फीस देने के लिए मजबूर कर दिया है।जिसके चलते अब अभिभावक लगातार स्कूलों के फीस वसूली के दबाव के आगे टूटने लगे है।जिसकी ना तो सरकार को चिंता है और ना अभिभावको के पक्ष में खुद को खड़ा दिखाने वाले प्रदेश के शिक्षा मंत्री महोदय को।

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क्या सरकार की आर्थिक सहायता के हकदार है प्रदेश के निजी स्कूल

प्रदेश में कोविड संक्रमन काल मे बंद स्कूलों में जहां बड़े निजी स्कूल लगातार मात्र आधे धंटे की ऑन लाइन क्लासेस के नाम पर अभिभावको से दो से तीन हजार तक ट्यूशन फीस वसूल कर रहे है।ऐसे में मात्र पांच से आठ सौ फीस लेने वाले छोटे निजी स्कूल पिसते जा रहे है।छात्र संख्या कम होने की वजह से वह बेहद सीमित क्षेत्र में स्कूल को संचालित करने वाले इस तरह के निजी स्कूल वास्तव में कोविड संक्रमण काल मे संकट में है।लेकिन कोविड संक्रमण से पहले तीस से चालीस लाख मासिक इनकम वाले बड़े निजी स्कूल आज सरकार को सबसे पहले आर्थिक सहायता का ज्ञापन भेज रहे है।जिस पर सरकार को भी संजीदा होने की आवश्यकता है।कि आखिर दिवालिया पन का रोना रोने वाले हाई प्रोफाइल स्कूल पांच महीनों में ही क्या इतने बेजार हो गए कि सरकार उन्हें आर्थिक सहायता दे।साथ ही सरकार को इन निजी स्कूलों का छात्र संख्या व क्लास वाइज फीस चार्ट के हिसाब से वर्गीकरण भी करना चाहिए की वास्तव में सहायता के हकदार है।या खाली सरकार के सामने यह सिर्फ दिखावा कर रहे है।वही शिक्षा महकमे को दो से पांच सौ छात्र संख्या वाले उन निजी स्कूलों का जरूर सर्वे करना चाहिए कि वह वर्तमान में किन स्थितियों में अपने छात्रों को ऑन लाईन शिक्षा दे रहे है।साथ ही इस विषय पर भी प्रत्येक विकास खण्ड स्तर पर सर्वे हो कि इस कोरोना काल मे निजी स्कूलों ने कोविड काल से पहले शिक्षक संख्या में कटौती कर कितने टीचरों का पत्ता अपने स्कूल से काट दिया।साथ जो शिक्षक वर्तमान में है उन्हें कब से सेलरी मिल रही है या मिल रही है तो क्या उसमे स्कूल प्रबंधन द्वारा कोई कोई कटौती तो नही की गई।

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