कारगिल विजय दिवस विशेष: भारत माँ के वीरों को शत-शत नमन,””कारगिल की चोटियों से आज भी आती हैं उनके साहस की गूँज

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शशांक पांडे,
(अथिति लेखक:लेखक राजनीति विज्ञान विषय के शिक्षक हैं)

उत्तराखंड: हर राष्ट्र का इतिहास उसके वीरों के बलिदान, उसके नागरिकों की एकता और उसकी सेना के शौर्य से बनता है। भारतवर्ष का इतिहास भी ऐसे अनगिनत बलिदानों से भरा हुआ है, जिन्होंने हर बार यह सिद्ध किया है कि यह देश केवल एक भू-खंड नहीं, बल्कि करोड़ों जनों की आत्मा है। इन्हीं अनगिनत बलिदानों में से एक अमर गाथा है कारगिल विजय की, और उसकी स्मृति में मनाया जाने वाला कारगिल विजय दिवस, जो हर वर्ष 26 जुलाई को हमें वीरता, त्याग और मातृभूमि के लिए समर्पण का सजीव स्मरण कराता है।

कारगिल युद्ध का आरंभ मई 1999 में हुआ, जब पाकिस्तान की सेना ने धोखे से भारतीय नियंत्रण रेखा को पार कर कारगिल, द्रास, बटालिक और तोलोलिंग की पर्वतीय चोटियों पर कब्जा कर लिया। यह कार्य पाकिस्तान ने गुप्त रूप से किया, जब सर्दियों के कारण भारत की कुछ अग्रिम चौकियाँ अस्थायी रूप से खाली की गई थीं। यह न केवल एक सैन्य धोखा था, बल्कि युद्धविराम समझौते का भी खुला उल्लंघन था। पाकिस्तान की मंशा थी कि वह इन चोटियों से भारत की सामरिक और रणनीतिक स्थिति को नुकसान पहुँचाए और कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाए।

लेकिन पाकिस्तान यह भूल गया था कि भारत एक शांतिप्रिय देश जरूर है, पर जब उसकी अखंडता पर आंच आती है, तो वह महाशक्ति बनकर उभरता है। जैसे ही इस घुसपैठ का पता चला, भारत सरकार ने तुरंत कार्यवाही करते हुए “ऑपरेशन विजय” प्रारंभ किया। इस ऑपरेशन के माध्यम से भारतीय सेना ने उस दुर्गम, बर्फीले और ऊँचाई वाले इलाके में दुश्मन से एक-एक इंच भूमि वापस छीनी। जिन परिस्थितियों में यह युद्ध लड़ा गया, वे कल्पना से भी परे थीं — 16 से 18 हजार फीट की ऊँचाई, शून्य से नीचे तापमान, बर्फीले तूफान, ऑक्सीजन की कमी और दुश्मन की ऊँचाई से गोलीबारी। फिर भी भारतीय जवानों ने अपने साहस, पराक्रम और रणनीति से दुश्मनों को धूल चटाई।

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इस युद्ध में भारत ने न केवल भूभाग वापस प्राप्त किया, बल्कि पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि भारत की सेना केवल संख्या या हथियारों से नहीं, बल्कि जज़्बे और ज़मीर से लड़ती है। इस युद्ध ने ऐसे-ऐसे योद्धाओं को जन्म दिया, जिनके नाम आज भी हर भारतीय के हृदय में श्रद्धा से गूंजते हैं। कैप्टन विक्रम बत्रा, जिनकी आवाज “यह दिल मांगे मोर” आज भी भारत की शौर्यगाथा में जीवित है, टाइगर हिल पर वीरगति को प्राप्त हुए।

लेफ्टिनेंट मनोज पांडे ने अपनी अंतिम साँस तक दुश्मनों से लड़ते हुए कई बंकर तबाह कर दिए। राइफलमैन संजय कुमार और योगेंद्र सिंह यादव ने घायल होने के बावजूद अपने मिशन को पूरा किया। ऐसे अनेक वीर जवान थे, जिन्होंने इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी — जिनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है, और जो हर उस तिरंगे में जीवित हैं जो भारत की भूमि पर लहराता है।
कारगिल विजय केवल एक सैन्य जीत नहीं थी। यह एक राष्ट्र की एकता, उसके नागरिकों के विश्वास, और उसके नेतृत्व की स्पष्टता का प्रतीक थी। पूरे देश ने इस युद्ध के दौरान एकजुट होकर सैनिकों को समर्थन दिया। स्कूलों में प्रार्थनाएँ हुईं, कॉलेजों में रक्तदान शिविर लगे, गाँव-गाँव से लोग सैनिकों के लिए दुआएँ और सहायता भेजने लगे। मीडिया ने पहली बार इतनी गहराई से युद्ध की कवरेज की, जिससे पूरा भारत एक परिवार की तरह युद्ध के हर क्षण को जी रहा था। यह पहली बार था जब देश की जनता को अपने सैनिकों के जीवन, संघर्ष और बलिदान का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ।

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26 जुलाई 1999 को भारत ने आधिकारिक रूप से घोषणा की कि कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त हो चुकी है। भारतीय सेना ने वह कर दिखाया जो असंभव समझा जा रहा था। इस विजय के पीछे केवल बंदूकें नहीं थीं, बल्कि एक सैनिक की माँ की ममता, उस पिता का गर्व, उस पत्नी की प्रतीक्षा, और उस बच्चे का सपना था, जो सैनिकों के हौसले को शक्ति दे रहा था।आज जब हम कारगिल विजय दिवस मनाते हैं, तो यह केवल अतीत की एक स्मृति नहीं होती, बल्कि यह वर्तमान और भविष्य की दिशा भी तय करता है। यह हमें सिखाता है कि देशप्रेम केवल भाषणों में नहीं होता, बल्कि हर नागरिक के छोटे-छोटे कर्तव्यों में छिपा होता है। देश की रक्षा केवल सीमा पर तैनात जवान नहीं करते, बल्कि एक शिक्षक, एक किसान, एक छात्र, एक डॉक्टर – हर कोई अपने-अपने क्षेत्र में ईमानदारी से काम करके इस राष्ट्र की सेवा करता है।
कारगिल विजय दिवस एक प्रेरणा है — कि जब देश पर संकट आए, तो हम एकजुट होकर उसका सामना कर सकते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि भारत केवल भूगोल नहीं, एक भावना है। यह भूमि सिर्फ मिट्टी नहीं, त्याग की सुगंध, बलिदान का रंग और निष्ठा की छाया है। हम सबका यह कर्तव्य है कि हम उन वीरों के सपनों का भारत बनाएँ, जिन्होंने अपने जीवन की अंतिम साँस तक देश को सुरक्षित रखने की शपथ ली।
आइए, इस दिन हम उन शहीदों को श्रद्धा से नमन करें, उनके परिवारों को प्रणाम करें, और अपने राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने का संकल्प लें। क्योंकि जब तक भारत माता के सपूत इस धरती पर हैं, तब तक कोई भी ताकत इस देश को झुका नहीं सकती।

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Deepak Fulera

देवभूमि उत्तराखण्ड में आप विगत 18 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी पत्रकारिता में बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सोशल प्लेटफॉर्म में जनमुद्दों पर बेबाक टिपण्णी व सक्रीयता आपकी पहचान है। मिशन पत्रकारिता आपका सर्वदा उद्देश्य रहा है।

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