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जंगली जानवरों से बचने के लिए अपनाया मशरूम, जड़ी- बूटी, केसर एवं कीवी की खेती
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लोहाघाट(चंपावत)- चंपावत जनपद के खेतीखन निवासी प्रदीप जोशी ऐसे व्यक्ति हैं जो जंगली जानवरों से हो रहे नुकसान के कारण खेती करना ही नहीं बल्कि अपने पूर्वजों की विरासत से नाता तोड़ते आ रहे लोगों के लिए ऐसे प्रेरणा स्रोत हैं, जिन्होंने चंडीगढ़ से यहां आकर अपने पुश्तैनी मकान को आबाद कर उसमें मशरूम के साथ शतावर, कश्मीरी केसर, याकुंन, इटालियन हर्ब ऑरिगेनो, रोजमैरी, ढींगरी मशरूम, बटन मशरूम, पीली व काली हल्दी व कीवी की खेती शुरू कर दी है।
प्रदीप जोशी प्रयोग के तौर पर अन्य दुर्लभ जड़ी बूटियां एवं औषधिय पौधों को भी उगा रहे हैं। जोशी के खेत से पुनःरिश्ता जोड़ने से उनके लंबे समय से चली आ रही सांस फूलने की समस्या बगैर दवा के ही ठीक हो गई है। जिससे 65 वर्षीय जोशी में नई स्फूर्ति आ गई है। इनके द्वारा इटालियन हर्ब ओरिगेनो जो पिज़्ज़ा का स्वाद ही बदल देती है। इसी प्रकार रोजमैरी पैदा कर रहे हैं जो नॉनवेज को अलग ही जाएका दे देता है। इनके द्वारा पारंपरिक धुना व छाती पैदा की गई है जो दाल एवं सब्जी में तड़का देने से उसका स्वाद बदल देती है इनके द्वारा दो हजार रुपए प्रति किलो वाली काली हल्दी लगाई है। जिसमें सामान्य हल्दी की तुलना में दस गुना अधिक एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल गुण पाए जाते है।
कृषि विज्ञान केंद्र की उद्यान वैज्ञानिक डॉ० रजनी पंत द्वारा जोशी को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। डॉ0 पंत की सलाह पर अब जोशी ने अपने यहां कीवी की व्यापक स्तर पर खेती शुरू कर दी है। इन्हें वैज्ञानिक तरीके से कम भूमि में अधिक उत्पादन की तकनीक बताई जा रही है।
डॉक्टर पंत का कहना है कि खेत प्रकृति का ऐसा माध्यम है जहां एक दाना बो कर सौ दाने मिलते हैं। डॉ० पंत ने गांव छोड़ चुके किसानों को सलाह दी है, कि वह प्रदीप जोशी की तरह घर लौटकर पूर्वजों की विरासत संभाले वे उनका पूरा सहयोग करेंगी।
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