खटीमा(उत्तराखंड)- एक कवि के जीवन में उसकी पहली कविता का कितना महत्व होता है,पहली कविता के सृजन में कवि किन परिस्थितियों में कविता का सृजन करता है,साहित्य साधना के सफर में कविता लिखने की प्रथम अनुभूति को एक बार फिर कवि के जीवन में उसके सम्मुख रखने हेतु वरिष्ट कवि व साहित्य साधक डॉ महेंद्र प्रताप पांडे “नंद” जी ने “मेरी पहली कविता” काव्य गोष्ठी का आयोजन थारू राजकीय इंटर कॉलेज खटीमा के परिसर स्थित अजीम प्रेमजी फाउंडेशन संस्था कार्यालय में आयोजित किया गया।जिस का संचालन डॉ महेंद्र प्रताप पांडेय नंद जी द्वारा किया गया।काव्य सम्मेलन की अध्यक्षता शिव भगवान मिश्र ने की।
काव्य गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में विराजमान वरिष्ठ कवि डॉ रूप चंद्र शास्त्री “मयंक” ने 1965 में लिखी कविता जल में मयंक, प्रतिबिंबित था, अरुणोदय होने वाला था, कली कली पर झूम रहा एक चंचरिक इक मतवाला था सुनाकर कवि समूह की जमकर वाह वाही बटोरी। कवि कैलाश पांडे ने 1971 में लिखी अदृश्यपूर्व, अभूतपूर्व, अभूतपूर्व ऐसा अश्लील कर्म कविता सुना कर बालिकाओं के साथ हो रहे अमानुष कार्यों पर ध्यान दिलाया। वही महेंद्र प्रताप पांडेय ‘नंद’ ने 1982 में लिखी जानता हूं फिर भी अपरिचित, मन लुभाती जा रही हो कविता से आनंदित किया। चम्पावत जनपद से पहुचे कवि रविंद्र पांडे ‘ पपीहा’ ने 1977 की कविता मानव बदला,बदली काया और बदल गया संसार सुना कर भाव विभोर किया। वही शिव भगवान मिश्र ने 1981 की लिखी लिखे थे जो भी हमने शब्द, कर लिए जब्त कहकर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। कवि त्रिलोचन जोशी ने अपनी 1998 की पहली कविता मैं तेरा पति नहीं हो सकता सुनाकर वाहवाही लूटी।
काव्य गोष्ठी में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार डॉक्टर जगदीश पंत ‘कुमुद ‘ ने अपनी पहली कविता मानवता रोती है तब तक वो नशे के ठेकेदारों सुनाकर समस्त कवियों को सुंदर संदेश के साथ आनंदित किया।कवित्री दया भट्ट दया ने शब्दों का भी भाग्य होता है*
हेमा जोशी ‘परू’ ने 1995 में अपनी बाल कविता मैंने एक बनाई गुड़िया, नन्ही जादू की पुड़िया तो बसंती सामंत ने एक बात बोलती हूं मान जाओ न बाबू जी, मुझको भी भैया सा पढ़ाओ न बाबूजी तो शांति देवी ने तो क्या हुआ एक बेटी आज फिर से जल गई कर समाज पर कटाक्ष किया।
डॉक्टर नीलम पांडे ‘ नीलिमा’ ने मैं अकेली हूं जगत में प्रिय, मेरा साथ दो तो तुलसी बिष्ट ‘ तनु’ ने इस जहां में किसने किसका दर्द बांटा है, जिसने जो बोया वही तो काटा है कविता सुनाई। संतोष कुमार वर्मा ने भरपूर मजूरी चाही, भरपेट भोजनवा सुनाई तो वही रामरतन यादव रतन ने 2018 में लिखी क्या खता थी मेरी मां, न संचित किया अपनी ममता के आंचल से वंचित किया कर तालियां बटोरी। इस अवसर पर दिव्य प्रकाश जोशी, आलोक सिंह, सोनू त्रिपाठी ने अपने संस्मरण सुनाए। कवि विपिन जोशी ने चिड़िया कहती है सूरज से, आसमान में उड़ती हम है सुना कर अपना बचपन याद किया।
काव्य गोष्ठी के अंत मे काव्य गोष्ठी के प्रणेता वरिष्ठ साहित्यकार व कवि डॉ महेंद्र प्रताप पांडे ने समस्त गुणी कविजनो को उनकी पहली सुंदर रचना हेतु साधुवाद दिया।साथ ही समस्त कविजनो को अपने काव्य सृजन को अनवरत जारी रखने का हेतु कहा।काव्य गोष्ठी में शिरकत करने पहुँचे सभी कवियों ने काव्य गोष्ठी के विषय मेरी पहली कविता के माध्यम से उन्हें उनके जीवन की पहली कविता के सृजन स्मरण को एक बार फिर इस काव्य सम्मेलन के माध्यम से अनुभूति करने के अवसर को प्रदान करने हेतु कवि डॉक्टर महेंद्र प्रताप पांडे व अजीम प्रेमजी फाउंडेशन का आभार व्यक्त किया।
काव्य गोष्ठी में काव्य गोष्ठी के संचालक डॉ महेंद्र प्रताप पांडे नंद,जगदीश पन्त कुमुद,रामरतन यादव “रतन” ,डॉ रूपचंद्र शास्त्री मयंक, कैलाश पाण्डेय, रवींद्र पाण्डेय “पपीहा”डॉ नीलम पाण्डेय “नीलिमा ” शिव भगवान मिश्र,
हेमा जोशी “परू” बसन्ती सामंत त्रिलोचन जोशी, शांति सामंत, संतोष कुमार वर्मा, दया भट्ट “दया”जी,विपिन जोशी,संतोष कुमार वर्मा,दिव्य प्रकाश जोशी,आलोक सिंह,सोनू त्रिपाठी कविगण मौजूद रहे।