खटीमा(उत्तराखंड)- उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्र खटीमा निवासी सुप्रसिद्ध कवित्री दया भट्ट द्वारा जहां काव्य के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य किया जा रहा है। वही उनके द्वारा रचित सुंदर काव्य रचनाओं को कई मंचो पर सम्मान भी मिल चुका है। कवित्री दया भट्ट की ऐसी ही एक खूबसूरत रचना को विभाग उत्तराखंड के मंच पर हम आप लोगों से साझा कर रहे हैं। मैं नारी शीर्षक नाम से रचित इस रचना का आप भी आनंद उठाइए…
मैं नारी_
मेरी अवधारणा की मंजूषाऐं,
जब खुलती हैं परत दर परत।
धरती का सा लिए धैर्य..
मैं सृष्टि की सृष्टा।
प्रकृति के कई अनुपूरक़ रूपों के
बिम्ब की प्रतिबिम्ब बनी मैं,
तारों सी झिलमिलाती रहती हूं।
हर युग में मेरा खुद का
परिवेश है।
समय, परिस्थिति,घर,संसार,
देश व परिवार।
प्रार्थनाएं,विनय,करुणा व
ममता के उत्कृष्टभाव में समाई मैं_
केशर,धवल,शीतल, हिमनद सी।
दूसरों के दुख -दर्द में
पिघल पिघल कर
चंदन सा स्पर्श देती हूं।
क्यों कि मैं नारी हूं।
मैं आत्मबल से परिपूर्ण,
अदम्य साहसी,वर्तमान की प्रेरणा
व भविष्य की प्रणेता हूं।
मेरी गरिमामयी उपलब्धि,
संतुष्टि से सदैव भरा रहता है मेरा मन।
आनंद से भर लेती हूं मैं जीवन।
कठिन परिस्थितियों से
निकलने का भी है, मुझ में जज्बा।
सपनों में जारी रहता है मेरा संघर्ष।
एक सिपाही की तरह,
मैं नींद में भी कभी न हारी।
हाँ,! मेरी भी हैं
कुछ कमजोरियाँ।
कभी कभी मैं यह भी
नहीं जानती कि,
मैं लड़ क्यों रही हूं।
मुझे कुछ अनुमान है,
शायद में अपने ही खिलाफ
एक जंग लड़ रही हूं।
ऐसा नहीं कि मुझमें
विवेक नहीं है।
लेकिन एक भय भी है
पीछे रहने का।
और एक आदत है काम करने की।
मेरा मुझ पर पूर्ण विश्वास है,
वह है_
मैं निरंतर आगे बढ़ी हूं
और बढ़ती रहूंगी।