बच्चों की तरह भावात्मक लगाव पैदा करना पड़ता है पौधों की सुरक्षा के लिए -स्वामी शुद्धिदानंद
लोहाघाट(चंपावत)- मानव एवं प्रकृति के बीच अनादिकाल से चले आ रहे रिश्ते जब तक सही सलामत रहे, लोग पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी भावी पीढ़ी के लिए हरे भरे जंगल विरासत में देते रहे तब तक न तो कोई पर्यावरण प्रदूषण की स्थिति थी और न हीं कहीं जल संकट। जब से मनुष्य ने प्रकृति से रिश्ता तोड़ा और पेड़ों से लालच करना शुरू किया तब से ही पर्यावरण प्रदूषण की स्थितियां पैदा होने लगी। आज प्रकृति के संरक्षण, जैव विविधता, जल संरक्षण एवं पीढ़ी दर पीढ़ी नई पीढ़ी को विरासत में हरे-भरे जंगलों को सौंपने की परंपरा देखनी है तो चंपावत जिले के लोहाघाट से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर वन पंचायत मायावती के जंगलों को देखा जा सकता है।
इस स्थान में वर्ष 3 जनवरी, 1901 को युगवतार स्वामी विवेकानंद जी के चरण पड़ने से जहां समूचा पर्वतांचल धन्य हो गया। वहीं यहां मानव सेवा के लिए अद्वैत आश्रम एवं धर्मार्थ चिकित्सालय आदि की स्थापना की गई। श्री रामकृष्ण मठ एवं मिशन के तत्वावधान में यहां मानव सेवा व प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लेते हुए लगभग 120 हेक्टेयर क्षेत्र को वन पंचायत में शामिल किया गया। आज वन पंचायत मायावती उत्तराखंड की ऐसी वन पंचायत है जहां जंगलों के बीच दिन में सूर्य की किरणें छन-छनकर धरती को स्पर्श करती हैं। जंगल में वन्यजीव स्वच्छंद घूमते हैं। यहां के आसपास के गांवौं में गुलदार का कोई हमला नहीं होता है। आज भले ही हिमालई प्रदेश आग उगलने लगे हैं लेकिन जंगलों के कारण यहां के तापमान में बहुत मामूली परिवर्तन आया है, वह भी आसपास के वातावरण के कारण हुआ है।
वन पंचायत के सरपंच एवं अद्वैत आश्रम के प्रबंधक स्वामी सुह्रदयानंद कहते हैं कि इस जंगल को बनाने के पीछे यहां के संतों का संकल्प, समर्पण भाव, दृढ़ इच्छा शक्ति एवं चट्टानी इरादा रहा है।आश्रम के अध्यक्ष एवं विद्वान संत स्वामी शुद्धिदानंद जी महाराज बताते हैं कि किस प्रकार बन विहीन क्षेत्र को वनों की हरियाली से आच्छादित किया गया। इसमें प्रतिदिन हमारी कड़ी निगरानी, कुल्हाड़ी न चलने देना प्रतिवर्ष 150 से 200 पौधों का रोपण, जंगलों में किसी प्रकार का मानवीय हस्तक्षेप न करना, आग से जंगल को बचाना सरकार या वन विभाग से सकारात्मक सहयोग तो लेना लेकिन जंगल को सरकारी हस्तक्षेप से कहीं दूर रखना, वन क्षेत्र में चीड़ को न पनपने देना, पानी के पोषक वृक्षों का संरक्षण करना है।
स्वामी जी का कहना है कि घने जंगलों के बीच जहां हम ईश्वरीय सत्ता का सुखद आनंद ले सकते हैं वही जंगलों के मध्य रहने वालों की मानसिक स्थिति व स्वभाव सदा शांत रहता है, जबकि वन विहीन स्थानों में रहने वाले लोगों का स्वभाव चिड़चिड़ा रहता है। यहां के वन क्षेत्र में पानी का जलस्तर कभी कम नहीं होता, जंगल में कहीं कुल्हाड़ी चलने की आवाज आने एवं आग का धुआं दिखाई देने पर तत्काल आश्रम के लोग दौड़कर उस स्थान में पहुंच जाते हैं। यही वजह है कि मायावती के जंगल के आसपास के जंगलों को भी सुरक्षा मिलती रही है। स्वामी जी का कहना है कि पेड़ों के संरक्षण के लिए तो बच्चों के पालने जैसा भावात्मक लगाव पैदा करने की जरूरत होती है। इसी को लेकर ही मनुष्य का अस्तित्व टिका हुआ है।