लोहाघाट: कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भारत नेपाल सीमा में लगता है नागार्जुन देवता का मेला,भारत एवं नेपाल सीमा से लगे लोग समान रूप से पूजते हैं नागार्जुन देवता को

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लोहाघाट(चंपावत)- कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भारत नेपाल सीमा का विभाजन करने वाली महाकाली नदी के तट में स्थित पासम एवं लेटी के बीच शेरा नामक स्थान पर प्रतिवर्ष त्रयोदशी से शुरू होकर पूर्णिमा के दिन तक चलने वाला नागार्जुन देवता का मेला अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। प्रतिवर्ष तीन दिन तक चलने वाला यह मेला अर्जुन पुत्र नागार्जुन देवता की इतनी प्रसिद्धि लिए हुए है कि यहां के क्षेत्रीय लोग अपनी मनौतियों को पूरा करने के लिए अन्य स्थानों से भी यहां आते हैं।

मेले के मुख्य गांव सल्टा बगौटी जहां नागार्जुन देवता की मूल जड़ मानी जाती है, यहां प्रत्येक परिवार अपने कुल देवता को पूजने देश-विदेश से प्रतिवर्ष पहुंचते हैं। सल्टा बगौटी गांव में चार दिन पूर्व से ही रात्रि जागरण शुरू हो जाते हैं, जहां रात्रि में लोग नागार्जुन देवता का जयकारा करते हुए नगाड़े बजाते लोक गीत तथा झोड़ा गाते हैं। त्रयोदशी की रात्रि से सल्टा बगौटी आकर लोग देव दर्शन करते हैं। यहां नागार्जुन देवता की 12 गांव में मान्यता है। लोग उन्हें अपना ईस्ट मानते हैं। सुबह से ही यहां लोगों की भीड़ लगने लगती है। निःसंतान महिलाएं गोद भरने की मनौती लेकर सुबह से ही यहां मंदिर में ध्यान में बैठ जाती हैं।

रात्रि में सल्टा, बगौटी,जमरसौ, सुल्ला, पासम, मझपीपल, सुनकुरी,गुरेली, डुमडाई, सागर मंडल 12 गांव के लोग मंदिर की परिक्रमा करते हुए जयकारे के साथ देवता को जागृत करते हैं। उस समय नदी के किनारे का दृश्य इस तरह प्रतीत होता है कि मानो स्वर्ग पृथ्वी पर अवतरित हो गया है। पूरी रात्रि जागरण के साथ सुबह 4 बजे काली नदी में धामी डंगरियों को स्नान कराया जाता है। एक बार शताब्दियों पूर्व सल्टा गांव के एक धामी जी को नदी में स्नान के लिए ले जाते समय अकेला छोड़ दिया गया तो वह नदी के अंदर चले गए कि उनका कोई अता-पता नहीं चला। उन्हें बताया गया कि वह नदी के अंदर बाहर दिन तक रहकर आए। बताते हैं उन्हें कहा गया कि वे भूलोक में जाकर पाताल लोक के गुप्त रहस्य को किसी से नहीं बताएंगे। देवता ने बताया कि उनका क्षेत्र कोटगाड़ी से खगड़िया तक है। तबसे लोग इन देवता का गुणगान करते हैं। पाताल लोक में गए धामी द्वारा वहां के रहस्य को तब बताया गया जब उनके परिवार में बारहवीं का क्रियाकर्म चल रहा था। वहां का रहस्य खोलने के बाद उनकी मृत्यु हो गई। कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में यहां का दृश्य इतना मनोहारी दिखाई देता है कि जैसे देवलोक से सभी देवता यहां आ गए हों।

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Deepak Fulera

देवभूमि उत्तराखण्ड में आप विगत 15 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी पत्रकारिता में बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सोशल प्लेटफॉर्म में जनमुद्दों पर बेबाक टिपण्णी व सक्रीयता आपकी पहचान है। मिशन पत्रकारिता आपका सर्वदा उद्देश्य रहा है।

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