लोहाघाट: मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की पहल “बुके नहीं बुक भेंट कीजिए” को लोगों ने लिया हाथों-हाथ,अंग्रेजों के समय से चली आ रही स्वागत परंपरा को बंद कर बुक भेट करने की परंपरा को आगे बढ़ाएंगे जनपद के लोग

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लोहाघाट(उत्तराखंड)- चंपावत को मॉडल जिला बनाने की सोच रखने वाले सीएम पुष्कर धामी की बुके नही बुक भेंट करे की पहल को यहां के लोगों ने हाथो हाथ लिया है कि “लोग किसी के सम्मान में बुके नहीं,बुक भेंट करें”, इससे न केवल आपकी यादें स्थाई एवं पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहेगी बल्कि खेतों एवं फुलवाड़ी में खिले फूल सदा हमें मुस्कुराते रहने का संदेश व आंखों को सुकून देते रहेंगे। लोहाघाट के शिक्षाविदों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने अंग्रेजों के समय से चली आ रही बुके देने की चौचलेबाजी समाप्त कर न केवल फिजूल खर्ची को रोकने का प्रयास किया है बल्कि उसे खिलते हुए फूलों का भी सम्मान किया है जिसकी नियति देवताओं एवं हर व्यक्ति के सर में पहुंचने की होती है। बुकें के रूप में दिए गए पुष्प जहां कुछ ही समय बाद नाली में या पैरों से कुचलते रहते हैं इससे आपकी भावनाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है।

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लोहाघाट क्षेत्र के प्रमुख शिक्षाविद एवं राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित शिक्षक नरेश राय कहते है की सीएम धामी ने गुलामी के दौर से इस रिवाज को समाप्त कर पुस्तकों को भेंट करने की परंपरा का जो शुभारंभ किया है इससे हम सबको पुस्तकों के माध्यम से अपने देश के गौरवशाली अतीत से जुड़ने का न केवल माध्यम बनेंगे बल्कि इससे हमारे अध्ययन को बढ़ावा मिलने के साथ उसे व्यक्ति के घर को ज्ञान से आलोकित करेंगे, यही ज्ञान उसके परिवार के सद्मार्ग में चलने की प्रेरणा देता रहेगा। श्री राय का कहना है कि मुख्यमंत्री जी की यह ऐसी पहल है जिसका हर कोई व्यक्ति स्वागत कर रहा है।

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शिक्षाविद नरेश राय

जबकि एक आदर्श शिक्षक के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले शिक्षक भगवान जोशी का कहना है कि पुस्तकों को भेंट करने की परंपरा से हर व्यक्ति को अपनी संस्कृति, परंपराओं, इतिहास, परिवेश से जुड़ने के साथ उनका न केवल ज्ञानार्जन होता रहेगा बल्कि उस व्यक्ति के परिवार में दी हुई पुस्तक आपकी यादों को भी तरोताजा रखेगी। माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी की पहल पर महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा अब विदेशी मेहमानों को गीता भेंट की जाती है। इसी पुस्तक के बलबूते ही एयर स्ट्राइक के दौरान विदेशी भूमि में फंसे हमारे जाबांज अभिनंदन को सकुशल भारत सौंपने के लिए पाकिस्तान मजबूर हुआ था। श्री जोशी का कहना है कि इससे पहले ताजमहल को स्मृति चिन्ह के रूप में दिया जाता था जबकि ताजमहल एक मकबरा है।

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शिक्षक- भगवान जोशी

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Deepak Fulera

देवभूमि उत्तराखण्ड में आप विगत 18 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी पत्रकारिता में बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सोशल प्लेटफॉर्म में जनमुद्दों पर बेबाक टिपण्णी व सक्रीयता आपकी पहचान है। मिशन पत्रकारिता आपका सर्वदा उद्देश्य रहा है।

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