बेबाक उत्तराखंड पर पढ़िए शरद पूर्णिमा पर कवि रवि पांडे”पपीहा” जी की शानदार रचना, शरद पूर्णिमा…यहां और वहां

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बनबसा(चम्पावत)- चम्पावत जनपद के बनबसा स्थित शैक्षिक संस्थान ग्लोरियस एकेडमी के मैनेजिंग डायरेक्टर व साहित्यकार कवि रवि पांडे “पपीहा जी की शानदार खूबसूरत काव्य रचना शरद पूर्णिमा को हम अपने पाठको को के लिए लेकर आए है।

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शरद पूर्णिमा – यहां और वहां

यहां:
दिनकर के दिन गए गुज़र, सर्द पवन लहराई है।
मम्मी मौज करेंगे अब तो, शरद पूर्णिमा आई है।।
तृप्ति हो चुकी इन वस्त्रों से, गर्म लिबास अब पहनेंगे।
नहीं स्वेद टपकेगा तन से, जी भर के अब खेलेंगे।।
मुक्ति मिली कूलर – पंखों से, अब तो लिहाफ ओढ़ेंगे।
दिन छोटे और रात बड़ी है, जी भर के अब सोएंगे।।
कुल्फी के दिन गए, ऋतु, गाजर हलवे की आई है।
मम्मी मौज करेंगे अब तो, शरद पूर्णिमा आई है।।

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वहां:
आंचल अपना ज़रा ओढ़ा दो, आंख न अब तक लग पाई है।
मां जी अब दिन कटेंगे कैसे? शरद पूर्णिमा आई है।।
बिन वसन अब तक दिन बीते, अब वस्त्र कहां से आयेंगे?
अंबर ही छप्पर था अब तक, अब सिर कहां छुपाएंगे?
दीर्घ रात्रि दानव सी लगती, अब कैसे रैन बिताएंगे?
भूखे पेट सांझ को सोकर, कैसे सुबह जग पाएंगे?
आंखों से निकली अश्रुधार अब, अधरों पर जम आई है।
मां जी अब दिन कटेंगे कैसे? शरद पूर्णिमा आई है।।

  • रविन्द्र पाण्डेय ‘पपीहा’
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