सोशल मीडिया के जरिए किसानों से सीधा संवाद कर रहे हैं केवीके के वैज्ञानिक,अपना केवीके लोहाघाट नाम से बना व्हाट्सएप ग्रुप

मनोज कापड़ी, संवाददाता लोहाघाट।
लोहाघाट(उत्तराखंड)- कृषि विज्ञान केंद्र के युवा वैज्ञानिकों की टीम ने केंद्र प्रभारी डॉ अमरीश सिरोही के नेतृत्व में सोशल मीडिया के माध्यम से किसानों को खेत से जोड़ने एवं उन्हें जैविक ,प्राकृतिक खेती के साथ एकीकृत खेती की ओर प्रेरित करने के नए प्रयास किए जा रहे हैं ।वैज्ञानिकों की टीम ने अपना केवीके लोहाघाट नाम से व्हाट्सएप ग्रुप तैयार किया है जिसमें वैज्ञानिकों के अलावा प्रगतिशील किसान अपने अनुभव साझा कर रहे हैं।

इस ग्रुप में किसानों की अच्छी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। केंद्र प्रभारी के अनुसार पढ़े-लिखे बेरोजगार अपना समय व्यर्थ गवाए यदि वैज्ञानिक तौर तरीकों से खेती करते हैं। तो उनके लिए सम्मानजनक ढंग से जीवन यापन करने की पर्याप्त संभावनाएं एवं अवसर है। पहाड़ों में कम भूमि होने पर किसान पानी की उपलब्धता के आधार पर मत्स्य पालन ,मुर्गी पालन, दुधारू पशुपालन, मौनपालन ,वे मौसमी सब्जी, फलोत्पादन, जड़ी बूटी ,की खेती कर सकते हैं। उद्यान एवं मौनपालन की जुगलबंदी उत्पादन बढाने एवं रोजगार मै सहायक है ।केन्द प्रभारी अनुसार सोशल मीडिया के माध्यम से अब वैज्ञानिकों का किसानों से सीधा संवाद होने से उनका खेतों के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है।
इधर नेपाल सीमा से लगी वशकुनी गांव में केंद्र के कार्यक्रम सहायक फकीरचंद ने खेतों में गेहूं की बुवाई लाइन शो का प्रदर्शन किया। उनका कहना था कि लाइन में बीज डालने से जहां 25 फ़ीसदी बीज कम लगता है वही 95 फ़ीसदी बीज अंकुरित भी होता है। एक पौध कि दूसरे पौध के बीच दूरी होने से पौध को धूप हवा मिलने, गुड़ाई करने में आसानी होती है। इससे पौधों को नमी भी मिलती रहती है जबकि छिड़ककर वोने से 25 फ़ीसदी बीज बाहर रह जाता है जिसे चिड़िया चुग जाती हैं। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ सचिन पन्तं, डॉ भूपेंद्र खड़ायत, डॉ पूजा पांडे ,डॉ रजनी पन्तं ,कार्यक्रम सहायक फकीरचंद एवं गायत्री देवी के अनुसार वैज्ञानिकों द्वारा किसानों से किया जा रहा सीधा संवाद काफी प्रभावी होता जा रहा है ।क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों के अलावा भारतीय किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष नवीन करायत ने इसे एक सराहनीय पहल बताते हुए वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया है।

