ऐसी शिल्प व वास्तुकला से बनेगा मंदिर, जिसमें सूर्य भगवान अपनी पहली किरण से करेंगे मां बाराही का अभिषेक
बाराही धाम में पर्व के अनुसार यहां होते रहेंगे वर्षभर धार्मिक अनुष्ठान।
प्रतिवर्ष जून माह में किया जाएगा विश्व कल्याण महायज्ञ
देवीधुरा(चंपावत) – बाराही धाम में पूर्वजों की विरासत, मंदिरों की शिल्प कला का समावेश करते हुए नागर,द्रविड,पिरामिड गुंबद शिखर शैली के अलावा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर की शिल्प शैली के संगम का यहां ऐसा भव्य व दिव्य अलौकिक मंदिर बनेगा,जिसमें भगवान सूर्य नारायण की पहली किरण मां बाराही का अभिषेक करेगी। इस मंदिर में उत्तर भारत के सनातनी ही नहीं बौद्ध भी अपनी लोक परंपरा के अनुसार पूजा व दर्शन के लिए आएंगे। यह उत्तर भारत का ऐसा मंदिर होगा,जिसके टॉप में श्रीबद्रीनाथ मंदिर शैली के अनुसार पत्थर लगेंगे तथा कई मायनों में यह मंदिर अपनी विशिष्टता की चमक से देश-विदेश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करेगा। यह बात श्रीबाराही शक्तिपीठ ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं वर्तमान में रेलवे कोरिडोर के डायरेक्टर हीरा बल्लभ जोशी ने कही।
ट्रस्ट के बाद बाराही धाम के बदलते भावी स्वरूप की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि यहां देश के ख्याति प्राप्त आर्किटेक्टों द्वारा वास्तु के आधार पर मंदिर का ऐसा डिजाइन तैयार किया जा रहा है,जिसे देखते ही व्यक्ति के आचार, विचार व संस्कार बदलकर उनमें ऐसी सकारात्मक ऊर्जा पैदा होने लगेगी कि वह अपने को दैवीय सत्ता के निकट महसूस कर अनंत में खो जाएंगे। मंदिर के प्रवेश में 25 मीटर तथा पार्श्व में 37 मीटर तथा 70 फिट ऊंचा यह जागृत मंदिर क्षेत्रीय लोगों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ यहां की लोक कला, लोक संस्कृति, परंपराओं, मान्यताओं के अलावा शताब्दियों पूर्व की परंपराओं का ध्वजवाहक बनेगा।
हीरा बल्लभ जोशी ने बताया कि यहां संस्कृत के ऐसे आचार्य तैयार किए जाएंगे, जिन्हें देश-विदेश में सम्मान से जीवन यापन करने के अवसर मिलेंगे। मंदिर के पाषाण स्वरूप में किसी भी प्रकार की कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। यहां के मंदिर के पुजारी का पारंपरिक हक सुरक्षित रहेगा, किंतु उन्हें शास्त्री की डिग्री लेनी अनिवार्य होगी। यह व्यवस्था नई पीढ़ी पर लागू होगी। बाराही धाम में निकट भविष्य में वर्ष भर यहां होलीकोत्सव, पार्थिव पूजन, यज्ञोपवित,पाणिग्रहण संस्कार, दीपोत्सव,चैत्र व अश्विन माह में वाराही महोत्सव के अलावा यहां एक पखवाड़े तक सांस्कृतिक समागम आयोजित होंगे। प्रत्येक वर्ष जून माह में यहां विशाल श्रीबाराही ज्ञान महायज्ञ का आयोजन जारी रखा जाएगा। मंदिर के नवनिर्माण का मुहूर्त बनारस के विद्वान पंडितों द्वारा निकाला जा रहा है। मंदिर बनने के बाद यहां न केवल उत्तर भारत के लोग ही नहीं बल्कि वैष्णो देवी के साथ यहां भी शक्ति के उपासकों की मेजबानी करने का क्षेत्रीय लोगों को महान अवसर मिलेगा। मंदिर से हर वक्त ॐ का ऐसा स्वर गूंजेगा,जो यहां आने वाले उपासकों का ऐसा हृदय परिवर्तन कर उसे धर्म व सेवा में बदल कर उसके जीवन का कायाकल्प कर देगा। दूसरे चरण में मंदिर के उत्तर की ओर शिखर में स्थित मछवाल में भी मंदिर का निर्माण करने के साथ यहां ऐसी अत्याधुनिक दूरबीनें लगाई जाएंगी जिससे लोग यहां से हिमालय का चमकता दमकता विहंगम नजारा देख सकेंगे। इस स्थान से हिमालय की इतनी लंबी श्रृंखलाएं दिखाई देती हैं, जितनी अन्य स्थानों में संभव नहीं हैं।
कौन हैं हीरा बल्लभ जोशी ?
देवीधुरा। घोर अभावों के बीच अपनी प्रतिभा के बल पर जीवन में ऊंचे मुकाम में पहुंचे देवीधुरा के निकटवर्ती वारी गांव के स्व. पंडित केशव जोशी एवं माता दुर्गा देवी के बेटे हीरा बल्लभ जोशी ने अपनी इंटर तक की शिक्षा मां बाराही की गोद में ग्रहण की। इसके बाद इन्होंने नैनीताल तथा जेएनयू दिल्ली से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1992 में भारतीय सिविल सेवा में चयनित हुए। इसके बाद इन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करते हुए इन्हें राष्ट्रपति पदक व दर्जनों पुरस्कार मिले हैं। सनातन धर्म,भारतीय खेल,वित्त मां वाराही आदि विषयों पर कई पुस्तकें लिख चुके हैं। गरुड़ पुराण पर संकलित इनकी पुस्तक ने काफी लोकप्रियता हासिल की है। वर्तमान में यह रेलवे कॉरिडोर के निदेशक हैं। इन्हें पढ़ाई के दौरान ही मां बाराही का ऐसा आशीर्वाद मिला था कि समर्थ होने पर इन्होंने अपना सारा जीवन बाराही धाम को देश के मानचित्र में लाने में लगा दिया है। इनकी भक्ति साधना को देखते हुए ही इन्हें ट्रस्ट की महान जिम्मेदारी सौंपी गई है।