उत्तराखंड के सीमांत खटीमा इलाके में स्थित पौराणिक वनखंडी महादेव मंदिर का शिवलिंग, जो रोहणी नक्षत्र में बदलता है सात रंग,शिवरात्रि में उमड़ता है इस मंदिर में भक्तो का सैलाब, आप भी जाने मंदिर का धार्मिक इतिहास

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खटीमा चकरपुर स्थित पौराणिक वनखंडी महादेव मंदिर दर्शन

पांडव काल के इतिहास को अपने समेटे है खटीमा के चकरपुर स्थित वनखंडी महादेव मंदिर

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खटीमा(उधम सिंह नगर)- देवभूमि उत्तराखण्ड नैसर्गिक सौंदर्य के साथ अपने प्राचीन मंदिरों व धार्मिक पर्यटन के लिए जाना जाता है।आज हम आपको उत्तराखण्ड के उधम सिंह नगर जिले की नेपाल सीमा से लगे खटीमा चकरपुर इलाके में प्राचीन काल से स्थित वनखंडी महादेव शिवालय से रूबरू कराएंगे।इस प्राचीन धर्म स्थल में भोलेनाथ का एक ऐसा शिवलिंग है जो रोहणी नक्षत्र में शिव रात्रि के दिन सात रंग बदलता है।इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं महाभारत काल मे अज्ञातवास के दौरान पाण्डवो ने की थी। महाभारत काल में स्थापित उत्तराखण्ड की भारत नेपाल सीमा से लगे जंगलो मे स्थित पौराणिक प्राचीन वनखंडी महादेव मन्दिर में भारत व नेपाल के हजारों भक्तों की आस्था है।

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महाशिवरात्रि के अवसर पर उमड़ा भक्तों का सैलाब

पौराणिक वनखंडी महादेव मंदिर भारत नेपाल सीमा पर बसे चकरपुर नामक ग्राम के पास घने जंगलो मे स्थित है। भगवान भोलेनाथ का यह प्रसिद्ध मन्दिर जिसे वन खण्डी महादेव के नाम से भी जाना जाता है। हर साल शिववरात्री के अवसर पर मंदिर परिसर में लगने वाले मेले मे दूर दूर से श्रद्धालु आ कर
भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर मन की शान्ति पाते है। स्थानीय थारू जनजाति समाज के साथ स्थानीय लोग इसे ग्राम देवता के रूप में पुज इस मंदिर के प्रति अपार आस्था रखते है।

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वनखंडी महादेव मंदिर परिसर में शिव भगवान की सौ फीट से भी ऊंची स्थापित मूर्ति

लोक कथाओ के अनुसार वनखंडी मंदिर शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल मे अपने वनवास के दौरान पाण्डवो ने शान्तियज्ञ कर की थी।जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण देती है खटीमा से 25 किमी0 दूर कांकर नामक स्थान पर गाढी गई वो छडी स्तम्भ जिसे शान्ति यज्ञ कर के स्ंवय भीम ने शारदा नदी की धार के बीचोबीच गाढ दिया था। हालांकि पिछले कुछ वर्ष पहले भू स्खलन के चलते वह भीम छड़ी नदी में समा गई हो लेकिन पांडव काल मे पांडवो द्वारा अज्ञातवास के दौरान चकरपुर में वनखण्डी महादेव के शिव लिंग की स्थापना के बाद इस भीम छड़ी को शारदा नदी की धार के बीचों बीच गाड़ा गया था।

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पौराणिक वनखंडी महादेव मंदिर शिवलिंग

वर्तमान में मन्दिर के बारे मे भी स्थानिय लोक कथाओ मे बताया गया है कि महाभारत काल के बाद यह शिवलिंग समय की परतो मे कही खो गया था इसकी पुनः खोज स्थानीय थारू जनजाति समाज के आदीवासीयो ने तब की जब उन्होने देखा की उनकी गाये इस स्थान पर जा स्ंवय अपना सारा दुध इस शिवलिंग पर चढा देती हैं।जिसके बाद तत्कालीन चन्द्र वंशीय राजाओ ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया। और तब से ही यहाॅ हर साल शिववरात्री पर एक भव्य मेले का आयोजन होता है। जिसमे देश के कई स्थानों के साथ साथ नेपाल से भी श्रद्धालु आ भोले बाबा के दर्शन कर अपनी इच्छाओ की पूर्ती के लिए प्राथर्ना करते है।जिन प्राथर्नाओ को वनखण्डी महादेव हमेशा पुरा करते है।

शिवरात्रि के दिन रोहणी नक्षत्र में यह अद्भुद व पुराणिक शिव लिंग सात रंग भी बदलता है।जिसके चलते वनखण्डी महादेव का यह शिवालय लाखो भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।बद्री दत्त पांडे द्वारा लिखित कुमाऊं के इतिहास में भी इस प्राचीन वनखण्डी महादेव के शिवालय का उल्लेख मिलता है।

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कुमाॅउ के इतिहास मे वर्णित इस पौराणिक मन्दिर की समृद्वी जंहा दिनों दिन लगातार बडती जा रही है। वही नेपाल व भारत के सैकडों लोगो की आस्था के केन्द्र के रूप में पौराणिक काल
से यह मन्दिर खटीमा चकरपुर क्षेत्र में स्थापित है।वही अब वनखण्डी महादेव की अपार मान्यता के चलते मन्दिर स्थान के पास ही सौ फीट से भी अधिक ऊंची शिव भगवान की मूर्ति का निर्माण किया गया है। जो इस धाम की सुंदरता को ओर भी बढ़ाने का काम कर रहा है।इस लिए आप लोग भी भारत नेपाल सीमा पर स्थित इस पौराणिक मंदिर के दर्शनों को खटीमा के चकरपुर इलाके में पहुँच वनखंडी महादेव के दर्शन कर अपनी आध्यात्मिक शांति को प्राप्त कीजिये।

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