चम्पावत(उत्तराखण्ड) उत्तराखण्ड के चम्पावत जनपद में पहाड़ की बेटियों के मानसिक व सामाजिक संवर्धन हेतु कार्य कर रहे “है जालौ “समूह पहाड़ की बेटियों के पर्सनालिटी डपलेवमेंट ,सामाजिक सोच में बदलाव,क्षेत्र की सनस्याओ के प्रति दृष्टिकोण विकसित करना के साथ खेल व अन्य माध्यमो से पहाड़ की बेटियों को सशक्त बनाये जाने का कार्य कर रही है।इस समूह से जुड़ कर कार्य कर रही ऐसी ही एक बेटी मेघा ने ” है जालौ” समूह से जुड़ने के बाद अपने अनुभव व अपनी विकसित होती सोच को अपने ब्लॉग के माध्यम से साझा करने का प्रयास किया है।सीमान्त क्षेत्र के अग्रणी न्यूज पोर्टल होने के नाते हम बेबाक उत्तराखण्ड पर चम्पावत की बेटी मेघा के ब्लॉग को स्थान दे रहे है। आप भी जानिए चम्पावत की बेटी मेघा के ब्लॉग से उनके सामाजिक दर्शन व बदलाव के नजरिये को उनके इस ब्लॉग के माध्यम से…..
अपना टाइम आएगा ?
मेरा नाम मेघा है, मैं चंपावत के साधारण परिवार में पली बढ़ी हूं। मेरी इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई हिंदी माध्यम से हुई है, मेरा ग्रेजुएशन भी चंपावत डिग्री कॉलेज से पूरा हुआ, पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए मैने पिथौरागढ़ डिग्री कॉलेज में एडमिशन लिया, जहां पर मैं अंतिम वर्ष की स्टूडेंट हूं, कोरोना में स्कूल /कॉलेज बंद होने के कारण मैं अपने शहर चंपावत वापस आ गई, यहां मुझे ‘है जालों’ समूह की मोबिलाइजेशन इंटर्नशिप पता चला, जिससे मैने जुड़ने का तय किया।
है जालों से जुड़ने के पहले दिन मुझे चम्पावत में उपस्थित समस्याओं को अलग अलग नजरिए से देखने का मौका मिला, मुझे पहली बार इस बात का अहसास हुआ कि हम अपने आस पास की समस्याओं को देखते है, पर कभी उन समस्याओं का मूल कारण जानकर उन्हे खतम नही करते,बल्कि हम उन समस्याओं के साथ स्वयं को ढाल लेते है,या उन समस्याओं को सरकार के लिए छोड़ देते है ।
चंपावत की सभी समस्याओं में से एक समस्या युवाओं में अपने करियर के प्रति अज्ञानता की भी है , जिस मुद्दे पर “है जालों” समूह कार्य करता है। समूह द्वारा इस समस्या के निवारण के लिए ‘छलांग’ 3 दिवसीय कार्यक्रम जिसमे वॉलीबॉल टूर्नामेंट के साथ करियर काउंसलिंग करना तय हुआ, तथा पूरी टीम ने अलग अलग पंचायतों का चयन किया , हम सभी मिलकर 11 गांवों में पैदल चलकर गए और हर गांव में घर घर जाकर युवाओं से बात की इसके अलावा हमने प्रत्येक युवा को कॉल तथा मैसेज किया , वॉलीबॉल टूर्नामेंट को लेकर कुछ युवाओं ने कार्यक्रम में दिलचस्पी ली , अगले दिन कार्यक्रम दो शिफ्ट में आयोजन किया जाना था, यह सब करने के बाद भी प्रथम शिफ्ट में कोई भी युवा नही आया, डेढ़ घंटे रुकने के बाद टीम वापस आ गई। जिसके बाद पूरी टीम ने समस्या पर चर्चा की व शाम की शिफ्ट की तैयारी जारी रखी, परंतु शाम की शिफ्ट में भी युवा एक घंटा लेट पहुंचे,जिनमे से सिर्फ आधे युवा ही करियर काउंसलिंग को तैयार हुए, यह सब देखते हुए हमने दोनो जगह पर कार्यक्रम को स्थगित कर दिया।
इन सभी प्रक्रिया में मुझे अहसास हुआ कि चम्पावत के युवाओं का अपने भविष्य को लेकर चिंताएं तो हैं,परंतु वे कभी इन चिंताओं को हल नही करना चाहते है। भविष्य में होने वाली चीजों को वे भविष्य में टाल देते है साथ ही अपने वर्तमान को बेहतर बनाने की कोशिश भी नही करते है। चंपावत एक नया नया जिला होने के कारण यहां के युवा जानते है कि उनके पास करियर को लेकर बेहद कम ऑप्शन है, जिसके लिए वे लोग सिर्फ सरकार को दोष देते है। परंतु जब कोई नई opportunity उनके सामने हो तब वे इस opportunity को नजरंदाज करके चंपावत एक छोटी जगह है का रोना रोने लगते है, युवा सिर्फ नौकरी करना चाहते है, जिनमे उन्हे महीने में सिर्फ उनकी सैलरी मिल जाए, कुछ नया करने व सीखने की चाह बेहद कम युवाओं में देखने को मिलती है, और जो युवा कुछ नया सीखने की कोशिश भी करना चाहते है, वे समाज के डर से या नए काम की तरफ पहला कदम बढ़ाने के डर से या नए काम की तरफ पहला कदम बढ़ाने के डर से खुद को समेट लेते है। और सभी की तरह भेड़ चाल में चलते हुए सरकारी नौकरी की तलाश में जुट जाते है फिर चाहे उस काम से वो नाखुश हो।
इन सभी समस्याओं व युवाओं को जीवन में एक नया अवसर प्रदान करने के लिए ‘है जालों ‘ समूह द्वारा ‘रुख ठोक्को’ social internship की तैयारी की गई। जिसमें 18+ से सभी युवाओं को आधुनिक समाज में जरूरी कंप्यूटर ज्ञान, spoken English, पर्सनेलिटी डेवलपमेंट 3 महीने का कार्यक्रम / गतिविधियों युवाओं में आत्मविश्वास पैदा करेगी ।
परंतु 3 प्रश्न अभी भी चंपावत के युवाओं के सामने उपस्थित है–
क्या युवा अपने करियर के प्रति पारंपरिक नजरिए को छोड़ , करियर को एक नए नजरिए से देख पाएंगे ?
क्या युवा कुछ नया सीखना चाहते है?
क्या युवा कुछ नया करने पर लगने वाले हार के डर को हरा पाएंगे ?
By- Megha
{Community Mobiliser at HaiJalo)