खटीमा(उत्तराखण्ड)-उत्तराखण्ड राज्य निर्माण को चले संघर्ष में वर्ष 1984 से सक्रिय भूमिका में रहे खटीमा के अग्रणी राज्य आंदोलकारी व वर्तमान में चिन्हित उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी समिति(रजिस्टर्ड) के प्रदेश महासचिव भगवान जोशी ने प्रदेश के निर्माण के बाद लगातार बदत्तर होते राजनीतिक हालातों व उत्तराखण्ड को मुख्यमंत्रियों की प्रयोगशाला बनने पर चिंता व्यक्त की है।राज्य आंदोलनकारी राजनीतिक सामाजिक चिंतक भगवान जोशी ने एक बार फिर खटीमा विधानसभा सभी प्रदेश के जनमानस से प्रदेश के समुचित विकास व राज्य आन्दोलनकारियो के सपनो के उत्तराखण्ड की परिकल्पना को साकार करने हेतु नए विकल्प पर मंथन करने कि अपील की है।प्रमुख राज्य आंदोलनकारी भगवान जोशी ने अपना व्यक्त्व मीडिया को जारी कर स्वत्रन्त्र विचार मंच के माध्यम से क्या अपील की है आपको पढ़ाते है।
(व्यक्तव्य भगवान जोशी प्रमुख राज्य आंदोलनकारी व प्रदेश महामंत्री ,चिन्हित उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी समिति,उत्तराखण्ड)
खटीमा क्षेत्र के सम्मानित मतदाता भाईयो एवं बहनों, जैसा कि नवसृजित उत्तराखण्ड राज्य चौथे आम चुनावों की तरफ दिन प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा है। 70 विधान सभा क्षेत्र के सम्मानित मतदाताओं को भी अपना लोकप्रिय नेता चुनने के लिए आगामी विधान सभा चुनावों में मतदान के अधिकार का प्रयोग करना है। साथियों खटीमा स्वतंत्र विचार मंच का मानना है कि बीते 20 वर्षों में उत्तराखण्ड जैसे गरीब प्रदेश में राष्ट्रीय प्रार्टियों का प्रयोग पूर्णतया असफल सिद्ध हुआ है। राष्ट्रीय पार्टियों की हाईकमान संस्कृति ने जैसे उत्तराखण्ड देव भूमि को मुख्यमंत्री बनाने का कारखाना तथा इनके उपनिवेश के तौर पर भोग-बिलास का अड्डा बना दिया है। दुष्परिणाम स्वरूप जिस उत्तराखण्ड में 20 वर्षों में केवल तीन निर्वाचित मुख्यमंत्री होने चाहिए थे उनकी संख्या पांचवे कार्यकाल पूर्ण होते-होते एक दर्जन के करीब पहुंचने की सम्भावना प्रबल हो चुकी है। राष्ट्रीय पार्टियाँ मुख्मंत्री बदलने एवं वोट बैंक को प्रभावित करने के उद्देश्य से योग्यता को ताक पर रख कर लाल बत्तियां बांटने में मशगूल है। इनकी उद्योग नीति, पर्यटन नीति, खनन नीति, उर्जा नीति तथा अन्य समस्त प्रकार की नीतियों पर देश के नामी-गिरामी धन्ना सेठों का कब्जा है।
मुख्यमंत्री तय करने से लेकर वरिष्ठ नौकरशाहों की नियुक्त तथा जनहित के लिये बनने वाली समस्तनीतियों में टाटा, बिडला, अडानी व अम्बानी परिवारों का सीधा दखल होता है जिसके लिए सभी राष्ट्रीय पार्टियाँ व बड़े नेता इन धन्ना सेठों से भारी-भरकम धनराशि चन्दे के रूप में स्वीकार करती हैतथा बहुमत मिलने पर पूरी शासन सत्ता का रिमोट चुने विधायकों के हाथ में होने के बजाए सत्ता की दलाली करने वाले हाईकमान व धन्ना सेठों के पास होता है। साथियों यही कारण है सीमान्त प्रदेश उत्तराखण्ड को केन्द्रीय सहायता विशेष रूप से मिलने के बावजूद भी दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के आकंठ भ्रष्टाचार में डूबने के कारण उत्तराखण्ड से पलायन बदस्तूर जारी है।
सरकारी मशीनरी को शासन सत्ता का कोई डर नहीं है। दोनों पार्टियाँ अन्धा बॉटे रेवड़ी अपने-अपने को देई की कहावत को चरितार्थ करने में लगी है। जिससे विकास के मामले में हम बहुत पीछे जा चुके है। अतः खटीमा क्षेत्र जिसने राज्य निर्माण आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई है यहाँ की जनता को राष्ट्रीय पार्टियों की भूमिका की अवश्य समीक्षा करनी चाहिए तथा समय आ गया है कि =70 विधानसभा क्षेत्र खटीमा की जनता अपना विश्वसनीय तथा सुयोग्य उम्मीदवार पाने के लिए किसी तीसरे विकल्प पर विचार करें तथा समस्त प्रकार के दलों से स्वयं को पृथक रखते हुए केवल खटीमा क्षेत्र की चिन्ता करें।