चंपावत: जब भांग भंगीरे की चटनी से निकली वाह !अटल बिहारी बाजपेई का पहला व अंतिम भ्रमण अमिट छाप छोड़ गया लोहाघाट के आवाम में

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तब अटल जी को खिलाई गई थी मडुए की रोटी,लाल चावल की खीर, बड़पास का भात एवं भांग की चटनी आदि

गणेश दत्त पांडे,वरिष्ट पत्रकार लोहाघाट।

लोहाघाट(चंपावत)- 10 नवंबर 1981 का दिन था। टनकपुर से ही एहसास हो रहा था कि लोहाघाट और पिथौरागढ़ में ठंड पड़ रही होगी। अटल जी का लोहाघाट एवं पिथौरागढ़ का कार्यक्रम था। उनके साथ चल रहे उस समय की त्रिमूर्ति में से एक डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी का मेरे लिए संदेश आया कि अटल जी को पूरा पहाड़ी खाना बनाकर खिलाना है। इस कार्य में माधवानंद जोशी, हयात सिंह मेहरा एवं कृष्ण चंद्र पुनेठा को भी शामिल किया गया। सूखीडांग से यहां की वादियां देखकर अटल जी का कहना था कि यहां के लोग कितने भाग्यशाली हैं, जिन्हें इतने सुंदर वनों के बीच ईश्वर ने बसाया है। अटल जी के कार्यक्रम को लेकर लोगों में गजब का उत्साह एवं हर व्यक्ति में उन्हें देखने की ललक थी।

लोहाघाट के रामलीला मैदान में उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्र की जटिल भौगोलिक संरचना के बीच स्वाभिमान से रहने वाले यहां के लोगों से मुझे नई प्रेरणा मिली है। यह उनके जीवन का पहला व अंतिम भ्रमण था। सभा के बाद अटल जी को लोहाघाट के मुख्य बाजार से होते हुए पैदल भ्रमण कराया गया। टनकपुर से कार द्वारा आने पर वह इतने थक गए थे कि मायावती आश्रम नहीं जा पाए। अलबत्ता स्वयं अनपढ़ होते हुए दूसरों को शिक्षा देने के लिए अपने प्रयासों से लोहाघाट में स्वामी विवेकानंद पब्लिक लाइब्रेरी स्थापित करने वाले धन सिंह देव से मिलने अटल जी पुस्तकालय गए। वहां उनके प्रयासों को देखकर उनकी थकान ही दूर हो गई, कहा उत्तराखंड के लोगों को यह ज्ञान कुंज सदा आलोकित करता रहेगा। उन्होंने इस महान प्रयास के लिए श्री देव जी की मुक्त कंठ से सराहना की तथा उनकी पीठ थपथपाई।

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अटल जी के सम्मान में लोहाघाट के डाक बंगले में परोसे गए कुमाऊनी व्यंजनों का स्वाद लेते ही उन्होंने रहस्योद्घाटन किया कि पहाड़ के इस लजीज और पौष्टिक आहार से ही यहां के लोग तन से बलिष्ठ, मन से दृढ़निश्चयी एवं चट्टानी इरादों वाले होते हैं। सैन्यबहुल एवं चिर उर्वरा धरती का का राज यही पौष्टिक भोजन रहा है। डॉक्टर जोशी के सुझाव पर उनके लिए झिंगोरा एवं लाल चावल की खीर, बड़पास व कुंडी का भात, मड़वे की रोटी, भट्ट का चुदकवानी चुड़क्वानी, गहत की गौतानी,भांग व भंगिरे की चटनी, ककड़ी से बना झांस वाला रायता परोसा गया। जैसे ही उन्होंने चटनी को चखा तो उनके मुंह से अनायास वाह शब्द निकल गया। पूछने पर उन्हें डॉक्टर मुरली मनोज जोशी ने बताया कि भांग व भंगिरे के दानों को भूनकर इसमें भुनी हुई मिर्च, जीरा, पुदीना, अदरक व नींबू का रस मिलाकर बनाया जाता है। भांग का नाम लेते ही अटल जी मेजबानों की ओर विस्मय से देखने लगे। तब उन्हें बताया गया कि ईश्वर ने पहाड़ के लोगों को ठंड से बचाने के लिए यही सब खाद्य पदार्थ दिए हैं। भांग के बीज शताब्दियों से चटनी, नमक और सब्जी के प्रयोग में लाए जाते रहे हैं। ऐसा सुनने के बाद उन्होंने भांग की चटनी का और आनंद उठाया।

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डॉ जोशी ने पहाड़ी खाद्य पदार्थों में छुपी पौष्टिकता का उल्लेख करते हुए कहा कि इन्हीं पदार्थों को खाने तथा ठंडी हवा व पानी का सेवन करने से ही पहाड़ के लोग शरीर से फौलादी एवं मन से निर्मल होते हैं। तब अटल जी ने इन खाद्य पदार्थों के अधिकाधिक उत्पादन पर भी जोर दिया था। उस वक्त अटल जी द्वारा यहां के उत्पादों की जो तारीफ की गई थी, वह आज पूरी तरह प्रासंगिक हो गई है। जब उन्हीं के पदचिन्हों में चलने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यहां के इन खाद्य पदार्थों का परचम पूरे विश्व में लहराया हुआ है। यही नहीं इन पदार्थों की मांग बढ़ने के कारण अब किसानों को इसका उचित मूल्य भी मिल रहा है।

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Deepak Fulera

देवभूमि उत्तराखण्ड में आप विगत 15 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी पत्रकारिता में बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सोशल प्लेटफॉर्म में जनमुद्दों पर बेबाक टिपण्णी व सक्रीयता आपकी पहचान है। मिशन पत्रकारिता आपका सर्वदा उद्देश्य रहा है।

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