प्रयास में ही रही है कमियां, वरना मधुमक्खियां तो पांच हजार लोगों का पाल सकती है पेट,
सार्थक पहल न होने से मौन पालन के नाम में उड़ गए आज तक करोड़ों रुपए

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गणेश दत्त पांडे,वरिष्ट पत्रकार,लोहाघाट।

लोहाघाट(चंपावत)- सीएम धामी की परिकल्पना के अनुरूप चंपावत को मॉडल जिले का नया स्वरूप देने एवं रोजगारपरक बनाने के लिए वैमौसमी सब्जियों, फलोत्पादन एवं मौन पालन कार्यक्रम को एक साथ संचालित करने कि जरुरत है। कार्यक्रम की शुरुआत से पहले प्रत्येक ग्राम पंचायत से ऐसे युवाओं का चयन करना होगा जो स्वयं मौन पालन एवं वैमौसमी सब्जियों व फल,पौध लगाने का प्रशिक्षण लेंगे। इनका काम मौन पालन के लिए इच्छुक लोगों का चयन कर उन्हें गांव में ही प्रशिक्षण दिया जाएगा।इस कार्य के लिए गांव के एक व्यक्ति को प्रतिमाह कम से कम पांच हजार मानदेय के‌ रूप में दिये जाए। यह व्यक्ति गांव में पॉलीहाउस लगाने के साथ मल्चिंग, ड्रिप इरिगेशन की विधि भी ग्रामीणों को बताएंगे इनके कार्य के आधार पर ही मानदेय का भुगतान की व्यवस्था की जानी चाहिए। शुरुआत में मानदेय की व्यवस्था एक वर्ष के लिए होनी चाहिए। इस कार्यक्रम को संचालित करने से पूर्व स्थान एंव लाभार्थियों का सही चयन कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

प्रशिक्षण अवधि कम से कम 15 दिन की होनी चाहिए। व्यवहारिक प्रशिक्षण के लिए कृषि विज्ञान केंद्र में ज्योलीकोट की तर्ज पर प्रशिक्षण की व्यवस्था बनानी होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां लोगों के पास मौनो से भरे 4-5 बक्से हो,वहां भी व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा सकता है। इससे पूर्व केवीके के सभी वैज्ञानिकों, डीएचओ समेत सभी एडीओ, कृषि विभाग के सभी अधिकारियों व सक्षम कर्मियों, खादी ग्रामोद्योग आयोग के स्टाफ को पंतनगर में एक माह का मौनपालन प्रशिक्षण देकर उन्हें मास्टर ट्रेनर बनाया जाए। इनमें से एक को न्याय पंचायत प्रभारी बनाया जाए। जो क्षेत्र के प्रत्येक गांव के लोगों को प्रशिक्षण देंगे। इस कार्य की समीक्षा के लिए विभागीय अधिकारियों को जिम्मेदारी दी जाए।

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मौन पालको के लिए ब्लॉक स्तर पर ऐसा उद्योग लगाया जाना चाहिए जो तुन की लकड़ी से मौन के बक्से तैयार किये जा सके। उन्हें किसानों की नाप भुमि में उपलब्ध पेडो की लकड़ी दी‌ जाए।जो‌ मौनपालन‌ के लिए उच्च कोट की मानी जाती है, बल्कि मैदानी क्षेत्रों से मंगाए जाने‌ वाले मौन बक्सो कि तुलना मे स्थानीय स्तर पर बनने वाले बक्से काफी सस्ते एंव टिकाऊ भी होंगे।

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शहद बेचकर तीन लाख की सालाना आमदनी कर रहे हैं रिंकू

खेतीखान के रिंकू ओली ऐसे युवक हैं जिन्होंने शौकिया तौर पर मौनपालन का कार्य शुरू किया। वर्तमान में वह लगभग तीन लाख रुपए तक का शहद बेचकर बेरोजगारों को आइना दिखा रहे हैं। रिंकू का कहना है कि मौनपालन का बक्सा घर में होने से हमेशा घर में सकारात्मक ऊर्जा आने से सब कुछ तो अच्छा ही होता है इसी के साथ लक्ष्मी जी के आने की भी द्वार खुल जाते हैं।
फोटो।रिंकू ओली मौन बक्से का प्रदर्शन करता हुआ।

केवीके ने शुरू किया मौन पालन ग्रुप।

रोज किसानों के लिए नई नई जानकारियां दे रहे केवीके के युवा वैज्ञानिक डॉ भूपेंद्र खडायत एवं कृषि एवं भूमि संरक्षण अधिकारी हिमांशु जोशी एवं अन्य इस कार्य में रुचि रखने वाले कर्मचारियों द्वारा मौनपालन नाम से व्हाट्सएप ग्रुप तैयार किया है।जिसका उद्देश्य किसानों के घर-घर में कुटीर उद्योग की तरह मौन पालन कार्यक्रम को विकसित करना है। इसी के साथ उन्हें बैमौसमी सब्जियों व फलों के भी बाग लगाने के लिए प्रेरित करना है।

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मौनपालन की अपार संभावनाएं हैं चंपावत जिले में।

नामी मौनपालन विशेषज्ञ हरीश चंद्र तिवारी का कहना है कि चंपावत जिले की ऐसी भौगोलिक परिस्थितियां हैं जहां मौनपालन के जरिए हजारों लोगों का पेट पाला जा सकता है। मौनपालन से सब्जियों फलों और फूलों का 30 से 40 फ़ीसदी उत्पादन प्राकृतिक रूप से बढ़ने लगता है।

इन कामों के लिए नहीं होगी अतिरिक्त बजट की जरूरत

किसी भी कार्यक्रम को संचालित करने से पूर्व बजट कहां से आएगा? का सवाल पैदा होने लगता है। यदि डीएम चाहे तो जिला योजना, बी ए डी पी एवं अन्य योजनाओं में धन का जो दुरुपयोग होता है उसे रोक दें तो इस कार्यक्रम को संचालित करने में धन की कमी दूर तक सामने नहीं आएगी।

Deepak Fulera

देवभूमि उत्तराखण्ड में आप विगत 15 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी पत्रकारिता में बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सोशल प्लेटफॉर्म में जनमुद्दों पर बेबाक टिपण्णी व सक्रीयता आपकी पहचान है। मिशन पत्रकारिता आपका सर्वदा उद्देश्य रहा है।

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