लोहाघाट: अद्वैत आश्रम मायावती जहां आज भी उन नियमों व व्यवस्थाओं का अक्षरशःपालन किया जाता है, जो स्वयं 125 वर्ष पूर्व स्वामी विवेकानंद जी ने बनाए थे

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जलवायु परिवर्तन की बयार को थामें हुए हैं, वन पंचायत मायावती के जंगल।

आश्रम में ऐसा आत्मानुशासन है कि यहां पूरी दिनचर्या चलती है घड़ी के चक्र से।

लोहाघाट(उत्तराखंड) अद्वैत आश्रम मायावती के सुनहरे 125 वें साल के सफल एवं विश्व के आध्यात्मिक जगत में अद्वैत व वेदांत से आलोकित करने की जो क्षमता पैदा हुई है उसके पीछे आश्रम के विद्वान एवं सेवा के लिए समर्पित संतो द्वारा उन्ही नियमों व मार्गदर्शन पर चलना है जो स्वामी विवेकानंद जी ने आश्रम की स्थापना के समय मार्च 1899 में बनाए थे। यहां आत्मानुशासन इतना है कि संतो की दिनचर्या घड़ी की सुई के अनुसार चलती है। यही वजह है कि आश्रम एवं इसके द्वारा संपादित कार्यों की इतनी विश्वसनीयता है कि लोग यहां के संतों के चरण तले की माटी का तिलक लगाकर अपने को धन्य समझते हैं। यहां कोई भी कार्य दिखावे के लिए नहीं बल्कि आत्मानुभूति एवं ईश्वर के रूप में अवतरित श्रीरामकृष्ण देव एवं स्वामी विवेकानंद जी को साक्षी मानकर किए जाते हैं। आश्रम की स्थापना के बाद यहां वन पंचायत का गठन किया गया। जिसके आश्रम के प्रबंधक पदेन सरपंच होते हैं।

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वन पंचायत द्वारा पर्यावरण संरक्षण की यहां ऐसी मिसाल कायम की गई है कि समय के साथ पर्यावरण में आए बदलाव को न केवल थामे हुए हैं बल्कि यहां जैव विविधता एवं अन्य जीवों का अपना स्वच्छंद संसार बसा हुआ है। यहां का एक-एक पेड़ स्वामी विवेकानंद जी को समर्पित है । यही वजह है कि यहां के वनों को किसी प्रकार का नुकसान होने पर संत उसे बचाने के लिए की जान से जुट जाते हैं । समय – समय पर वन विभाग भी सहयोग करता आ रहा है ।आश्रम की व्यवस्था के लिए यहां अध्यक्ष (बड़े महाराज), उपाध्यक्ष, प्रबंधक, खजांची एवं प्रबुद्ध भारत के संपादक समेत 16 संत हैं जिनका बड़े महाराज के साथ आत्मा- परमात्मा जैसा संबंध रहता है।हालांकि श्री रामकृष्ण मिशन के देश-विदेश में सैकड़ो आश्रम है लेकिन अद्वैत आश्रम मायावती का अपना विशिष्ट स्थान है।

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इस आश्रम की एक शाखा कोलकाता में भी है जिसका प्रबंधन भी यहां के बड़े महाराज करते हैं।यहां स्वस्थ रहने पर संतों के प्रवास की कोई सीमा नहीं होती है। अलबत्ता बड़े महाराज अपना आधा समय कोलकाता आश्रम को देते हैं।आश्रम द्वारा संचालित धर्मार्थ चिकित्सालय के रोगियों, अन्य स्टाफ व मेहमानों के लिए गौशाला भी स्थापित की हुई है। जहां का शुद्ध एवं जैविक दूध आश्रम में प्रयोग होता है ।यहां जैविक खेती व फल उत्पादन भी होता है । यहां देश-विदेश से श्रद्धालु आते रहते हैं जिनके लिए यहां आवासी भवन बने हुए हैं, लेकिन उनकी बुकिंग बेलूर मठ कोलकत्ता से ही होती है इसके अलावा देश-विदेश से निशुल्क चिकित्सा सेवा देने के लिए आने वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिए अलग से आवाज बने हैं। यहां आने पर व्यक्ति सीधे देवीय शक्ति से जुड़कर अपने को परमात्मा के बशीभूत मानने लगता है। यही नहीं आश्रम को देखकर उसके आचार – विचार व संस्कार भी बदल जाते हैं कई लोगों में तो वैराग्य लेने का भाव भी पैदा होने लगता है।

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यहां के हर वृक्ष में बसी है हुई है स्वामी विवेकानंद जी की आत्मा- डीएफओ

मायावती वन पंचायत के बारे में डिविजनल फॉरेस्ट ऑफीसर (डीएफओ) आर सी कांडपाल का कहना है कि देवभूमि उत्तराखंड में यह पहली ऐसी बन पंचायत है जहां विभिन्न प्रजातियों के सघन वृक्ष हैं, जिनका संरक्षण व संवर्धन यहां के संत बच्चों की तरह करते आ रहे हैं। सही मायनों में यहां जिस भावना से वन तैयार किया गया है उसके प्रत्येक वृक्ष में स्वामी विवेकानंद जी की आत्मा बसी हुई है।

Deepak Fulera

देवभूमि उत्तराखण्ड में आप विगत 15 वर्षों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं। आप अपनी पत्रकारिता में बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। सोशल प्लेटफॉर्म में जनमुद्दों पर बेबाक टिपण्णी व सक्रीयता आपकी पहचान है। मिशन पत्रकारिता आपका सर्वदा उद्देश्य रहा है।

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