नर को नारायण मानकर की जा रही सेवा तथा मनुष्य में मनुष्यत्व के भाव पैदा करते 125 साल में पहुंचा विश्व प्रसिद्ध अद्वैत आश्रम मायावती।
लोहाघाट(चंपावत)- संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र में प्रकृति ने कुछ ऐसे स्थान सुसज्जित किए हुए जहां मानवीय प्रयासों की आवश्यकता ही नहीं है। यदि ऐसे स्थान में किसी महापुरुष के चरण पड़ जाए तो वह स्थान दिव्य,भव्य एवं तीर्थ बन जाते हैं। लोहाघाट से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी में एक युगांतरकारी घटना हुई, जब 3 जनवरी 1901 को महामनीषी स्वामी विवेकानंद जी के यहां चरण पड़े तथा वह यहां एक पखवाड़े तक ठहरे थे। तब संपूर्ण यहां का क्षेत्र धन्य हो गया था। तब यहां आकर स्वामी जी की परिकल्पना भी सरकार हो गई जो उन्होंने 1896 में स्विट्जरलैंड में आल्पस पर्वत को देखकर अभिव्यक्त की थी। “”हिमालय के दृश्य एवं यहां के लोग मुझे दृढ़ निश्चायी बनने की प्रेरणा देते हैं और मैं हिमालय क्षेत्र में एक मठ स्थापित करने के लिए लालायित हूं, जहां अपने कार्य से विश्राम लूं और जीवन का अंतिम समय ध्यान में बिता दूं साथ ही यह स्थान भारतीय एवं पाश्चात्य शिष्यों के लिए साथ रहने व काम करने का होगा।” बाद में यह काल्पनिक स्थान कैप्टन सेवियर एवं स्वामी स्वरूपानंदजी के प्रयासों से यथार्थ रूप में मायावती के रूप में सामने आया।
हिमालय के उत्तुंग शिखर, वनों से आच्छादित यह स्थान 19 मार्च 1899 को अद्वैत आश्रम मायावती के रूप में विश्व के श्रद्धालुओं का केंद्र बन गया।
प्रबुद्ध भारत जैसी विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक पत्रिका जो पहले मद्रास व अल्मोड़ा से कुछ समय के लिए प्रकाशित हुई थी का अब मायावती से ही प्रकाशन होने लगा। स्वामी जी ने इस आश्रम के आदर्श पर स्पष्ट रूप से कहा था कि “व्यक्तियों के जीवन के उदात्त और मनुष्य जाति को संप्रेरित करने के अभियान में इस सत्य को अधिक मुक्त और अधिक पूर्ण अवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से हम इसकी आदि स्फुरण भूमि हिमालय के शिखरों पर इस आश्रम की स्थापना कर रहे हैं। यहां एकमात्र शुद्ध, सकल, एकत्व सिद्धांत के अतिरिक्त कुछ नहीं पढ़ाया जाएगा और न ही व्यवहार में लाया जाएगा। सभी दर्शनों से पूर्ण सहानुभूति होते हुए भी यह आश्रम अद्वैत एवं अद्वैत्व के लिए समर्पित है। बाद में अपने यूरोप से लौटने के बाद बेलूर पहुंचने पर स्वामी जी को अपने प्रिय कैप्टन सेवियर की मृत्यु का समाचार मिला। स्वामी जी ने तब मायावती आने का निर्णय लिया। मौसम की विपरीत परिस्थितियों एवं कड़कड़ाती ठंड के बावजूद अनेक कठिनाइयां झेलते हुए यह दृढ़ निश्चयी महापुरुष 3 जनवरी 1901 को मायावती आश्रम पहुंच गए। तब से यह स्थान अद्वैत,साधना का विश्व प्रसिद्ध केंद्र बन गया।
स्वामी जी की इच्छानुसार मायावती में कोई मंदिर भी नहीं है। यहां किसी मूर्ति या चित्र की शास्त्रसंवत ढंग से पूजा अर्चना नहीं होती है। विशुद्ध अद्वैत भाव के लिए समर्पित होते हुए भी वेदांत की अन्य प्रकार की पूजा विधियों के प्रति सहानुभूति, सम्भाव रखा जाता है। जहां तक यहां अद्वैत व वेदांत का प्रश्न है। यह प्रत्येक वस्तु व प्राणी में परमात्मा के दर्शन करने का उपदेश देता है। किसी जाति, धर्म, संप्रदाय के भेद को न मानते हुए सभी के प्रति प्रेम व सेवा भाव का पाठ सिखाता है, क्योंकि हर पल सबके भीतर विद्यमान परमात्मा हर वक्त विराजमान रहते हैं। तब से जब कभी, जहां भी मनुष्य को मनवीय सेवा की आवश्यकता हुई है, वहां इस आश्रम के विद्वान एवं जनसेवा के लिए अपने को समर्पित कर चुके संत पहली पंक्ति में दिखाई देते आ रहे हैं। आश्रम द्वारा की जा रही विभिन्न प्रकार की सेवाओं की मिशाल दुनिया में बहुत कम देखने को मिलती है। यही वजह है की आश्रम के 125 वें स्थापना दिवस के कार्यक्रम में 31 मार्च को उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह कार्यक्रम के साक्षी बनने के लिए आ रहे हैं। राज्यपाल ने पिछले कुछ माह पूर्व भी अद्वैत आश्रम मायावती का भ्रमण कर कहा था कि यदि कहीं धरती में कोई स्वर्ग है तो उसे ईश्वर ने मायावती आश्रम के रूप में यहां बनाया हुआ है।