राज्य गठन के 20 वर्षों में तक राज्य आन्दोलनकारियो की शहादत के नाम पर राजनीतिक दलों ने की केवल सियासत
खटीमा(उत्तराखण्ड)- उत्तराखण्ड राज्य गठन को बीस वर्षों से भी अधिक समय हो चुका है।लेकिन आज भी प्रदेश भर के राज्य आंदोलनकारी तमाम सूबे में सत्तासीन रहे राष्ट्रीय दलों से खुद को छला हुआ महसूश कर रहे है।प्रदेश भर में राज्य आंदोलनकारी ताकतें जहां अपने हितों की रक्षा व सपने के उत्तराखण्ड निर्माण को लेकर आज भी संघर्ष कर रही है।वही ऐसे समय मे चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति के प्रदेश महासचिव भगवान जोशी ने प्रदेश के राज्य आंदोलनकारी ताकतों से अपील की कि प्रदेश के समस्त राज्य आंदोलनकारी ( चिन्हित तथा वंचित )अपने हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह लामबंद हो ।प्रमुख राज्य आंदोलनकारी भगवान जोशी के अनुसार एक बार फिर राज्य आंदोलनकारी 1 सितंबर 1994 को राज्य आंदोलन के दौरान खटीमा में हुए गोलीकांड की 26 वी बरसी मनाने जा रहे है।लेकिन बात अगर उत्तराखण्ड में तमाम सत्तासीन सरकारों की करी जाए तो राज्य निर्माण के दिन से आज तक प्रदेश में स्थापित सभी सरकारों ने राज्य आंदोलन के शहीदों, चिन्हित समस्त राज्य आंदोलनकारियों तथा उनके आश्रितों के साथ घोर अन्याय किया है।
उत्तराखंड आंदोलन के शहीदों की शहादत पर राजनीति करने वाले तथा घड़ियाली आंसू बहाने वाले सत्ताधारीयो ने आज तक आंदोलन के शहीदों के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए कभी भी कोई संकल्प नहीं लिया। हमेशा ही उनकी शहादत दिवस पर अपने-अपने दलों की राजनीति चमकाने के लिए शहीद स्थलों पर शहीदों का मौखिक गुणगान करते नहीं थकते ।शहीद परिवार गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं ।1994 राज्य आंदोलन के क्रांतिवीर जेल ,घायल घोषित राज्य आंदोलनकारी तथा उनके आश्रितों की नौकरियों पर न्यायालय की तलवार लटकी हुई है ।घोषित 12000 आंदोलनकारी 20 वर्ष बाद भी आज सड़कों की खाक छानने को मजबूर हैं।
प्रदेश महासचिव भगवान जोशी ने पक्ष तथा विपक्ष दोनों पर आरोप लगाया कि दोनों दल 20 वर्षों तक शहीद दिवस के नाम पर शहीद हुए आंदोलनकारियो की लाश पर राजनीति करते आए हैं तथा आज तक किसी भी सरकार ने उनके हत्यारो को सजा दिलाने का तनिक भी प्रयास नही किया।चिन्हित 12000अधिकांश आंदोलनकारियों में अधिकांश काल कलवित हो चुके हैं तथा शेष आंदोलनकारी व उनके आश्रित गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर हैं। प्रदेश महासचिव ने मांग की कि वर्तमान धामी सरकार अगर संवेदनशील है तब सर्वप्रथम झारखंड की तर्ज पर सक्षम परिषद या आयोग का गठन करें तथा राज्य स्थापना दिवस से पूर्व राज्य आंदोलनकारियों के न्यायोचित मांगों पर समय रहते विचार करें तथा उनके ठोस समाधान का रास्ता तलाशें ।
इसी के साथ ही राज्य आन्दोलनकारियो ने यह भी मांग की है कि वर्ष 1994 में खटीमा गोलीकांड में शहीद हुए शहीदों की याद में पुराने तहसील परिसर को पूर्णतया शहीद स्थल के रूप में विकसित किया जाए क्योंकि त्रिवेंद्र सरकार में खटीमा के विधायक धामी जी ने जो कि आज सौभाग्य से प्रदेश के मुखिया हैं के द्वारा घोषणा की गई थी कि संपूर्ण 9 बीघा क्षेत्र राज्य आंदोलन के शहीदों को समर्पित किया जा चुका है तथा पूरे मानकों के साथ एक विस्तृत परिसर की घेराबंदी कर एक विशाल व यादगार स्मारक स्थल का निर्माण कराया जायेगा जबकि नगरपालिका तथा स्थानीय प्रशासन द्वारा इसके विपरीत जाकर शहीदों को अत्यंत संकुचित स्थान दिया गया है जो कि माननीय क्षेत्रीय विधायक (वर्तमान मुख्यमंत्री )पुष्कर सिंह धामी जी की घोषणा के विपरीत है जिसका कि क्षेत्र के समस्त राज्य आंदोलनकारी समर्थन नहीं करते हैं तथा उन सभी का मानना है कि इससे शहीद परिवार तथा क्षेत्र की आंदोलनकारी जनता की भावना आहत होगी Iअतः संपूर्ण 9 बीघा क्षेत्र को शहीद स्मारक के रूप में विकसित किया जाए तथा संपूर्ण सुविधाओं से लैस किया जाए जो की संपूर्ण उत्तराखंड के लिए एक नजीर बन सके।