खटीमा विधानसभा ने राजनीतिक पंडितों के गणित को भी उलझाया,वोटरों की खामोशी 10मार्च को क्या गुल खिलाएगी पूरे सूबे को इंतजार,पढ़िए खटीमा विधानसभा पर बेबाक विश्लेषण

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खटीमा(उत्तराखंड)- उत्तराखण्ड में भले ही विधानसभा चुनाव को लेकर 14 फरवरी को मतदान सम्पन्न हो चुका हो।लेकिन 10 मार्च को मतगणना से पहले सूबे की सभी 70 विधानसभा सीटों में जीत हार के गणित को सुलझाने में राजनीतिक पंडित लगे हुए है।बात सूबे की सबसे हॉट सीट व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की विधानसभा खटीमा की करी जाए तो इस बार इसके परिणामो को लेकर कुछ भी निश्चित तस्वीर सामने नही आ पाई है।खटीमा विधानसभा में सीएम के विपक्ष में कांग्रेस के टिकट से लगातार दूसरी बार चुनावी मैदान में उतरे कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष भुवन कापड़ी ने 2017 के चुनाव से भी कड़ी टक्कर सीएम पुष्कर धामी को दी है।जातिगत समीकरणों के चलते उलझी खटीमा विधानसभा में सेकेंड लार्जेस्ट वोटर थारू जनजाति की खामोशी ने इस वीवीआईपी सीट के परिणामो को उलझा दिया।

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लगभग 1लाख 20 हजार वोटर वाली खटीमा विधानसभा में पर्वतीय मतदाताओं के बाद थारू जनजाति के मतदाता सबसे अधिक है।40 हजार के लगभग जहाँ पर्वतीय मतदाता खटीमा विधानसभा में मौजूद है वही लगभग 29 हजार थारू जनजाति की भी संख्या खटीमा में मौजूद है।इसके अलावा मुश्लिम,सिख/पंजाबी,बंगाली,पूर्वांचल एससी व अन्य वर्ग का मतदाता आता है।

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सीएम पुष्कर सिंह धामी के पक्ष में भले ही मुख्यमंत्री होने का वेटेज हो।लेकिन विधानसभा प्रतिनिधि के रूप में मुख्यमंत्री होने की वजह से खटीमा विधानसभा का मतदाता इस बार खुल कर नही बोला है।हालांकि पर्वतीय मतदाता का रुझान जरूर सीएम की तरफ इस बार दिखा है।लेकिन कांग्रेस प्रत्यासी भुवन कापड़ी के पक्ष में थारू जनजाति का झुकाव सहित अन्य सभी वर्गों का वोट पड़ना मुकाबले को रोचक बना रहा है।थारू जनजाति के मतदाताओं का 2012 व 2017 की तरह इस बार ध्रुवीकरण होने की संभावनाए कम दिख रही है।2017 चुनाव में बसपा से लड़े रमेश राणा भले ही पिछली बार 17 हजार से अधिक मत लाये हो लेकिन इस बार उनका भी अपने समाज मे ग्राफ गिरता हुआ देखा गया है।इसके पीछे उनका देर से चुनावी मैदान में आना व थारू समाज मे पिछले तीन चुनाव में उनके मत के ध्रुवीकरण का संदेश जाना भी हो सकता है।

जबकि आप प्रत्यासी के रूप में एस एस कलेर की मौजूदगी कुछ खास चुनावी गणित खटीमा के बना पाएगी ऐसा होता नही दिख रहा है।2022 का मुकाबला इस बार भी भाजपा व कांग्रेस के मध्य होता दिख रहा है।जिस तरह खटीमा विधानसभा में थारू जनजाति,सिख,एससी वर्ग,मुश्लिम व गैर पर्वतीय मतदाता के इस बार कांग्रेस के पक्ष में मतदान किये जाने की हवा चल रही है।वह सीएम धामी के सामने कांग्रेस की चुनोती को कड़ा करता दिख रहा है।तमाम राजनीतिक पंडित इस बार के मुकाबले में जीत हार को कांग्रेस व भाजपा के बीच तीन से पांच हजार के बीच ही मान रहे है।

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जबकि खटीमा में कांग्रेस समर्थक जहां हार जीत को लेकर कुछ नही कह रहे है।लेकिन भाजपा समर्थक जीत के आंकड़े को शुरुवाती दौर में जहां दस हजार के ऊपर मानते थे वही उनमे से कई मानने लगे है कि जीत दो से तीन हजार के बीच ही होगी।इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि खटीमा विधानसभा का मुकाबला बेहद कड़ा है।

भाजपा के पक्ष की मजबूती इस बार पर्वतीय मतदाता बनता दिखा है।जिसके लगभग 70 प्रतिशत सीएम फैक्टर व मोदी फैक्टर की वजह से भाजपा में जाने की संभावना है।जबकि कांग्रेस के मजबूत पक्ष की बात की जाए तो थारू जनजाति के मतदाताओं के कांग्रेस के पक्ष में जाने सहित सिख,मुश्लिम अनुसूचित जाति मतदाता के कांग्रेस के पक्ष में जाना उसे मजबूत बनाता है।जबकि पूर्वांचल सहित अन्य वर्ग के मतदाता के दोनो ही दल के बीच बटने की संभावना है।खटीमा विधानसभा में कड़ा मुकाबला होना इस बात से भी साबित होता है की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सीएम होने के बावजूद अपनी विधानसभा में अधिकतर बने रहे।

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बात 2012 से विधानसभा चुनाव की करी जाए तो सीएम पुष्कर धामी 2012 में 5 हजार तो 2017 में 27सौ वोटो से ही जीत दर्ज कर पाए थे।मुख्यमंत्री बनने के बाद धामी समर्थक बड़ी जीत की संभावनाएं बेशक पहले से जताते रहे हो।लेकिन इस बार का मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच 50-50 होता दिख रहा है।कांग्रेस भाजपा के अलावा अन्य प्रत्यासियों के जहां इस मुकाबले में 10हजार के भीतर सिमटने की संभावनाएं है। वही भाजपा व कांग्रेस बीच आ चुका खटीमा विधानसभा का मुकाबला 10मार्च को किस ओर जायेगा यह अभी भी राजनीतिक पंडितों के सामने यक्ष प्रश्न बना हुआ है।फिलहाल 10मार्च को आने वाले परिणाम खटीमा विधानसभा के लिए रोचक होंगे ऐसी उम्मीद जरूर है।

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